10 Motivation story मोटिवेशनल स्टोरी हिंदी — Story for students

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Motivational stories. स्कूल के लिए 7 किमी पैदल जाना पड़ता था, खेतों में काम भी किया, अब बड़ी कंपनी में है इंजीनियर

6 उस दिन बहुत तेज बारिश हो रही थी। सतीश कुमार अपने बेटे बसंत के साथ लगातार खेत में धान की रोपनी का काम किए जा रहे थे। थक जाने के बावजूद भी बसंत डटा था।

पिता बार-बार कह रहे थे कि बेटा जा थोड़ा आराम कर ले। आजकल तो तुम देर रात तक पढ़ाई भी करते हो। अगले मार्च में दसवीं की बोर्ड परीक्षा भी है। बसंत का मन था कि जल्दी से छुट्टी मिल जाए ताकि वह घर जाकर पढ़ाई कर सके।

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लेकिन, वह अपने पिता को अकेले काम करते हुए छोड़कर जा भी तो नहीं सकता था। शाम ढलने तक पिता-पुत्र काम करते हैं और थकान से चूर होने के बावजूद घर आते ही बसंत पढ़ाई में लीन हो जाता है। बिहार के गया जिले के एक

सुदूरवर्ती गांव में रहने वाले बसंत को बचपन से ही पढ़ने का बड़ा शौक था। पिता भी कहते थे कि बेटा पढ़। मेरे पास बहुत थोड़ी सी जमीन है। अगर एक साल भी फसल नहीं हुई तो भुखमरी का सामना करना पड़ेगा। तुम्हारे 5 भाई बहनों के साथ-साथ दादा-दादी की भी जिम्मेदारी मुझ पर ही है।

इसलिए बेटा जितना हो सके उतनी मेहनत कर। बचपन से ही उसके मन में यह बात बैठ गई कि उसे खूब मेहनत करनी है।

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पास के ही सरकारी प्राथमिक विद्यालय से बसंत ने पढ़ाई शुरू की। पिता जब भी खेतों से काम करके आते बसंत के पास बैठ जाते थे और बगल में बसंत बैठकर पढ़ता रहता था। देर रात में बसंत जब तक पढ़ता रहता, पिता पास ही बैठे

रहते थे। बैठे-बैठे उनको कब नींद आ जाती पता भी नहीं चलता था। अब बसंत का हाई स्कूल में जाने का समय आ गया था। गांव के आप-पास कोई सरकारी स्कूल नहीं था। लगभग सात किलोमीटर दूर बसंत एक सरकारी स्कूल में

पढ़ने जाने लगा। मेहनत के दम पर स्कूल में भी बसंत ने अपनी एक अलग पहचान बना ली। शिक्षक भी उसे बहुत प्यार करने लग गए। पढ़ने के लिए सीनियर स्टूडेंट्स से कुछ पुरानी किताबें भी दिलवा देते थे। बड़ा जीवट वाला विद्यार्थी था बसंत। स्कूल के लिए प्रत्येक दिन पैदल ही सात

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किलोमीटर जाता और वापस आता था। जिस दिन स्कूल में छुट्टी होती थी, खेत में पिता के साथ कुछ न कुछ काम जरूर करता था। कभी-कभी तो काम अधिक होने पर स्कूल तक छोड़ देता था। बसंत बताता है कि उसे अच्छा नहीं लगता था कि उसके पिता अकेले ही सिर पर बोझ उठाएं या फिर और

भी कोई काम करें। इन तमाम मुश्किलों के बावजूद बसंत पढ़ाई में कोई कमी नहीं छोड़ता था। दसवीं की परीक्षा के कुछ दिनों पहले तक भी उसने पिता के साथ काम किया। उसे अपनी मेहनत पर पूरा विश्वास था। उसका यकीन सच साबित हुआ बहुत ही अच्छे अंकों से उसने दसवीं की बोर्ड

परीक्षा पास की। माता-पिता भी बहुत खुश थे। उस समय सुपर 30 की चर्चा उसके गांव तक पहुंच चुकी थी। उसे पूरा भरोसा था की उसका चयन सुपर 30 में हो जाएगा और वह आईआईटी तक की यात्रा पूरी कर लेगा पूरी तरह से ग्रामीण दिखने वाले बसंत के आत्मविश्वास को देखकर में भी

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अचंभित हो गया। अब वह सुपर 30 का हिस्सा बन चुका था। आईआईटी प्रवेश परीक्षा के दिन जब वह आशीर्वाद लेने आया तब उसके सिर पर एक गमछा बंधा था। मुझे आज भी

याद है कि उसके उत्साह को देखकर मुझे बहुत खुशी हो रही थी। जब उसका रिजल्ट आया तो वह अच्छी रैंक के साथ पास हुआ। उसका एडमिशन आईआईटी भुवनेश्वर में हो

गया। उसकी एक बड़ी कंपनी में नौकरी लग गई है। जब भी मेरे मन में बसंत का चेहरा आता है, मैं बड़ा गर्व महसूस करता हूँ।

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एक समय दो वक्त का भोजन भी मुश्किल था, पर आईआईटी से बना इंजीनियर

पटना जिले के डुमरी गांव में रहने वाले प्रवीण कुमार को पारिवारिक बंटवारे के बाद कुछ भी नहीं मिला। उनके पिता के पास जो थोड़ी सी खेती की जमीन थी वह भी बिक गई। धीरे-धीरे घर की आर्थिक हालत बहुत ही खराब हो गई।

प्रवीण की पढ़ाई भी ठीक से नहीं हुई। समय के साथ-साथ उनकी शादी भी हो गई और फिर बच्चे भी। कभी कहीं कुछ काम मिल जाता तब तो गुजारा हो जाता वरना दाल-रोटी भी बड़े नसीब की बात होती थी। अब बेटा उन्नत कुमार ने पढ़ाई

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शुरू कर दी थी। उन्नत की मां माधुरी देवी को भी बच्चों को पढ़ाने का बड़ा शौक था। उन्होंने उन्नत का एक स्थानीय स्कूल में ही एडमिशन करवा दिया था। भोला-भाला उन्नत पढ़ाई में खूब मन लगाता था। बचपन से ही जैसे पुरानी किताबों से ही काम चलाने की आदत पड़ गई थी उन्नत को। अब उन्नत

आठवीं कक्षा में पहुंच चुका था। पैसे का बहुत अभाव था। मां थोड़ा बहुत पढ़ी लिखी थी। उन्होंने गांव के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया ताकि गृहस्थी चलाने के लिए कुछ पैसों का

इंतजाम हो जाए तब तक गांव में मोबाइल फोन पहुंच चुका था। पिता ने कहीं से कुछ पैसे उधार लेकर मोबाइल की सिम और रिचार्ज कूपन बेचने का काम शुरू किया।

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एक दिन जब उन्नत घर आया तब देखा कि मां बहुत बीमार है। खाट से उठने तक की हिम्मत नहीं हो रही थी। सोचा कि कोई सामान्य बीमारी होगी, ठीक हो ही जाएगी दो-चार दिनों में लेकिन बाद में पता चला कि एक स्किन की गंभीर बीमारी

है। अब परिवार की मुश्किलें और बढ़ गई थी। मां की बीमारी के इलाज में पैसे भी काफी खर्च होने लगे। मोबाइल फोन के रिचार्ज कूपन और सिम कार्ड की बिक्री से इतने पैसे नहीं

आते थे कि घर का खर्चा भी ढंग से चल सके। उन्नत नौवीं कक्षा में पहुंच गया था। बीमार मां के इलाज की खातिर दिन-दिन-भर सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटता रहता था

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लेकिन, पढ़ने का शौक इतना था कि पढ़ाई किसी भी हालत में नहीं छोड़ता था। उन्नत अगर मां के साथ हॉस्पिटल भी जाता

था तब साथ में किताबें भी रख लिया करता था। जब तक डॉक्टर के पास जाने का नंबर नहीं आता था तब तक चुपचाप एक कोने में बैठकर अपनी पढ़ाई करता रहता था। समय

बीतता जा रहा था और उन्नत दसवीं कक्षा में पहुंच गया। जब कोई उससे पूछता था कि तुम पढ़ाई में इतनी मेहनत क्यों कर रहे हो तब उसका एक ही जवाब होता कि उसे इंजीनियर बनना है।

उस दिन घर में सब बहुत खुश थे, जब उन्नत बहुत ही अच्छे अंकों से दसवीं कक्षा पास कर गया था। मां को लग रहा था जैसे उनका सपना पूरा हो गया है। परंतु, कुछ ही दिनों के बाद आगे की पढ़ाई की चिंता के चलते पूरे परिवार को घबराहट

होने लगी। इधर उन्नत ने सुपर 30 के बारे में पूरी जानकारी इकट्ठी कर ली थी। फिर क्या उन्नत ने सुपर 30 का एंट्रेंस टेस्ट दिया और उसका हिस्सा बन गया। मैंने देखा कि उसका मैथेमेटिक्स बहुत ही कमजोर था। मैंने उसे सिखया कि

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मैथेमैटिक्स को अच्छा करने के लिए उसके हाउ एंड काई को समझो मैथेमेटिक्स के प्रत्येक फॉर्मूले को समझो उसे रटो नहीं और उन्नत ने ऐसा ही किया। परीक्षा के नजदीक आने के काफी पहले ही वह मैथेमेटिक्स के साथ-साथ सभी विषयों में होशियार हो चुका था। मुझे आज भी याद है कि उन्नत बहुत

ही कॉन्फिडेंस के साथ आईआईटी का एंट्रेंस टेस्ट देने गया था और रिजल्ट ने उसके कॉन्फिडेंस पर मुहर लगा दी। वह बहुत ही अच्छी रैंक के साथ आईआईटी एंट्रेंस टेस्ट क्वालीफाई कर गया था। उसका एडमिशन आईआईटी कानपुर में हुआ।

मां बहुत खुश थी। अब तो उन्नत की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी है।