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Motivational Story in Hindi -रियल लाइफ स्टोरी इन हिंदी
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परिस्थितियों में जीत की कहानी सुपर-30 के आनंद कुमार के शब्दों में
ताने मिले, एक आंख की रोशनी तक गंवाई, लेकिन हिम्मत नहीं हारी, आईआईटी रुड़की में एडमिशन पाकर बना इंजीनियर –संघर्ष से सफलता की कहानी
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के कुसमौर गांव के राधेश्याम की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए एक सबक हो सकती है, जो आर्थिक अभावों से गुजरकर बड़े मकसद हासिल करते हैं।
कल्पना कीजिए, इस लड़के के पिता सूरत में काम करते थे। मां के साथ दो बच्चे गांव में बस जैसे-तैसे गुजारा भर हो जाता था। अचानक पिता की नौकरी चली गई। वे गांव लौट आए। अस्थाई मजदूरी के भरोसे परिवार के हाल और बुरे हो गए।
वहां ज्यादातर परिवारों की हालत ऐसी ही थी। ऐसे परिवारों के बच्चे स्कूल की पढ़ाई छोड़-छाड़कर मजदूरी करने लगते थे। मां लीलावती अपने राधेश्याम के लिए बड़े होकर अच्छी नौकरी के सपने देखती, जो परिवार को गरीबी के अभिशाप से मुक्ति दिलाएगा।
8-9 साल की उम्र रही होगी। वह अपने भाई के साथ स्कूल जा रहा था। अचानक लड़खड़ाया। मुंह के बल गिरा एक नुकौली लकड़ी एक आंख पर लगी।
डॉक्टरों ने सलाह दी कि इलाहाबाद ले जाइए। मगर पैसे नहीं थे। आखिरकार बहुत देर हो चुकी थी। राधेश्याम की बाई आंख की रोशनी जाती रही।
वह बताता है कि पढ़ना मुश्किल हो गया। एक आंख पर कितना जोर देता। मगर आदत डाल ली। उस उम्र के दूसरे बच्चे गांव के बाहर काम की तलाश में जाते थे। उसके लिए बहुत कठिन समय था।
एक शिक्षक का ध्यान इस बच्चे पर गया, जिसकी लगन देखने लायक थी। उन्होंने पुरानी किताबें लाकर दी हौसला बढ़ाया। मगर उपहास उड़ाने वाले भी कम नहीं थे। चूंकि राधेश्याम गाना अच्छा गाता था,
इसलिए ऐसे लोगों की सलाह थी कि कहीं ट्रेन में गाना गाकर वह अपनी आजीविका कमाए। पढ़ाई में वक्त खराब न करे। वह कभी मायूस होता कभी रोता कभी चुपचाप अपने अच्छे समय का इंतजार करता और जमकर मेहनत करता।
उत्तर प्रदेश बोर्ड के 2012 के नतीजे आए। वह दसवीं पास हो चुका था। आगे की पढ़ाई क्या करनी है, यह बताने वाला कोई नहीं था। भाई ने कुछ लोगों से पूछताछ की। किसी ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई को बेहतर बताया। अब राधेश्याम ने
बारहवीं के साथ ही इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए कोशिशें शुरू की। उपहास उड़ाने वालों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। सब मिलकर उसके पीछे पड़े रहते कहते, तू क्या इंजीनियर बनेगा ? राधेश्याम जवाब देने की बजाय चुप रहता चुपचाप मेहनत करता मगर सब कुछ
आसान ही होता तो क्या बात थी। राधेश्याम नाकाम हो गया। ये वो वक्त था, जब वह बुरी तरह टूट गया था। अब आगे सिवाय अंधेरे के कुछ और सूझ नहीं रहा था। वह फूट-फूटकर रोया। जब अंधेरा इतना गहरा हो तो ही कहीं रोशनी की किरण फूटती है।
उसी समय किसी ने सुपर 30 का जिक्र उससे किया। वह खुश होकर पटना आ गया। वह हमारी टीम में शामिल हुआ। क्लास में जब भी मैं किसी फार्मूले को समझाता, बीच में उससे पूछता, राधेश्याम सच बताना।
अगर समझ में न आया हो तो दोबारा बताऊं? उस होनहार बच्चे का जवाब होता, सर, सिर्फ समझ में ही नहीं आया बल्कि आपके दिए हुए सारे सवालों के हल भी इस फार्मूले से मैंने कर लिए हैं।
जब देर रात सब पढ़ते हुए थक जाते, तब राधेश्याम सुरीली आवाज में भजनों का अमृत घोलता। नई ऊर्जा से सब बच्चे फिर पढ़ने लगते। जब आईआईटी में प्रवेश परीक्षा के लिए गया, उसके चेहरे की चमक सिर्फ मैंने देखी।
उसने इस परीक्षा को ऐसे युद्ध की तरह लिया था, जिसमें उसे जीतने के लिए ही जाना था। 2014 की प्रवेश परीक्षा के नतीजे वही आए, जिसके लिए राधेश्याम ने दिन-रात एक कर दिए थे। राधेश्याम आईआईटी रूड़की से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से पढ़ाई पूरी करके आज एक बहुत बड़ी कंपनी में नौकरी कर रहा है।
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रियल लाइफ स्टोरी इन हिंदी 2nd stoy
कोरोना संकट के बीच विपरीत परिस्थितियों में जीत की कहानी सुपर-30 के आनंद कुमार के शब्दों में प्रेरणादायक हिंदी कहानियाँ
बचपन में पिता ने छोड़ा, मां ने पढ़ाने के लिए किया सिलाई का काम, आज अमेरिका में कर रही रिसर्च
● वाराणसी में रहने वाले दिलीप कुमार गुप्ता के पिता मैकेनिक थे। बचप जिंदगी में ऐसे खतरनाक मोड़ कम ही लोगों के हिस्से में आते हैं। वह 2000 का साल था. जब प्रज्ञा के परिवार में एक भूचाल आया।
अचानक प्रज्ञा के पिता ने अपने ही परिवार से नाता तोड़ लिया। बांबी बच्चों को जैसे भुला हो दिया। मां ने विरोध किया तो सब सड़क पर आ गए। इसके पहले दो भाइयों के साथ वह दार्जिलिंग के एक नामी स्कूल में पढ़ती थी।
घर में समृद्धि का हर सामान था। किसी चीज की कोई कमी नहीं थी पिता के इस व्यवहार ने तीन बच्चों सहित एक मां को जीवन के विकट मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। इंसान का असल इम्तिहान ऐसे ही कठिन हालात में होता है।
प्रज्ञा की दुकप्रतिज्ञ मां ने नए सिरे से जिंदगी शुरू करने का फैसला लिया और शहर बदलकर आ गई। सिलाई जानती थी। अब इसका ही सहारा था। प्रज्ञा तब तक एक साधारण विद्यार्थी थी। लेकिन हालातों ने उसे भी बदरना। मां सिलाई करती घर चलाती वह सिर्फ पढ़ती।
बचे वक्त में मां का हाथ बंटाती। जब दसवीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास को तो सपनों को पंख लगे। जैसे अब उसे कुछ करके ही दिखाना था। कहीं से उसे सुपर 30 के बारे में पता चला। पटना में एक दिन वह मेरे सामने थी। मैंने देखा कि उस
उम्र की दूसरी लड़कियों की तुलना में प्रज्ञा वाकई प्रज्ञावान थी। वह एक सवाल को कई ढंग से हल करने की मेरी शैली की तारीफ करती और खुद भी कोशिश करती। उसने अपनी पूरी ऊर्जा और समय पढ़ाई को दिया। 2006 में एक शुभ
समाचार उनकी अंधेरी दुनिया में रोशन दीए की तरह आया। वह आईआईटी में चुन ली गई थी। उसे देश के अव्वल संस्थान आईआईटी बॉम्बे में दाखिला मिला। फीस के लिए लोन लिया। एक नया आसमान उसके सामने था। वक्त भी पंख
लगाकर उड़ा प्रज्ञा की डिग्री पूरी हुई और वह सात समंदर पार अमेरिका की मिनेसोटा यूनिवर्सिटी में केमिस्ट्री के एक रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए जा पहुंची। आज जब कभी आप प्रज्ञा वर्मा गूगल में सर्च करेंगे तब आपको भी खुशी होगी कि प्रज्ञा अमेरिका में जाकर कितना अच्छा रिसर्च करके भारत का नाम रोशन कर रही है। प्रज्ञा को चर्चित रिचर्ड एमेलर और आर्थर लॉज फेलोशिप मिल चुकी है।
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परिस्थितियों में जीत की कहानी सुपर-30 के आनंद कुमार के शब्दों में ~ hindi motivation story
गरीबी से लड़ा, कभी खाना तक नहीं मिलता था, अब जापान में कर रहा पढ़ाई, मिले नौकरी के कई ऑफर
वाराणसी में रहने वाले दिलीप कुमार गुप्ता के पिता मैकेनिक थे। बचपन में पढ़ने की बहुत इच्छा के बावजूद उनका यह सपना पूरा नहीं हो पाया। पैसे की तंगी के चलते दसवीं कक्षा में पहुंचने से पहले ही उनकी पढ़ाई छूट गई। कई शहरों में मेहनत-मजदूरी करते हुए गुड़गांव पहुंचे।
यहां एक फैक्ट्री में जनरेटर ऑपरेटर का काम करने लगे। पत्नी और दोनों बच्चों के साथ किसी तरह गुजर-बसर कर रहे थे। बड़े बेटे अभिषेक की छोटी उम्र से ही पढ़ाई में रुचि थी। अपनी हालत से दिलीप यह जान चुके थे कि शिक्षा ही उनके बच्चों का भविष्य बेहतर बना सकती है।
अभिषेक जब स्कूल जाने की उम्र का हुआ तो वे उसे गुड़गांव के सबसे अच्छे स्कूलों में ले कर गए। हर स्कूल में उसका सलेक्शन हुआ, लेकिन बड़े स्कूलों की फीस, ड्रेस और किताब-कॉपी का खर्च दिलीप के वश के बाहर की बात थी। मन मसोसकर उन्होंने शहर के सबसे सस्ते स्कूल में उसका एडमिशन करा दिया।
अभिषेक शुरू से ही हर कक्षा में अव्वल दर्जे से पास होता। इसी दौरान एक दिन स्कूल में जापानी भाषा सिखाने वाले टीचर आए। वह जापानी भाषा सीखने लगा। भाषा सीखते-सीखते वह जापान के बारे में सोचता रहता और पता नहीं कब उसके मन में जापान जाने की इच्छा जाग गई।
पिता यही सोचकर खुश थे कि विदेशी भाषा सीखने से वह गाइड का काम कर पाएगा, लेकिन कुछ दिनों बाद शिक्षक ने आना बंद कर दिया और जापान जाना तो दूर, वहां की भाषा सीखने की उसकी इच्छा भी अधूरी रह गई।
निराश अभिषेक ने गणित में मन लगाना शुरू कर दिया। किसी ने बताया कि इंजीनियर बनने के लिए गणित में अच्छा होना जरूरी है तो उसे लगने लगा कि वह भी इंजीनियर बन सकता है। वर्ष 2012 में उसे दसवीं की बोर्ड परीक्षा देनी थी। इसी दौरान दुर्घटना में पिता घायल हो गए। काम पर जाना बंद हो गया और आमदनी भी। हालत यह थी कि एक वक्त का भोजन मिलना भी बड़ी बात थी।
लेकिन अभिषेक लगन से अपनी पढ़ाई करता रहा। उसने अच्छे अंकों से दसवीं की परीक्षा पास की। वह इंजीनियरिंग की कोचिंग करना चाहता था, लेकिन इसके लिए परिवार के पास पैसे नहीं थे। वह खुद ही तैयारी करने लगा। वर्ष 2014 में इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं में शामिल हुआ,
लेकिन सफलता नहीं मिली। वह निराश हो गया। एक दिन जब उसके पिता फैक्ट्री में निराश बैठे थे, तो किसी ने सुपर 30 के बारे में बताया। इसके कुछ ही दिनों बाद अभिषेक मेरे सामने था। उसके चेहरे पर निराशा साफ झलक रही थी। वह आईआईटी में प्रवेश की तैयारी के लिए दिन-रात मेहनत करने लगा।
इसी बीच सुपर 30 की कामयाबी पर जापान में डॉक्यूमेंट्री बनी जो काफी चर्चित हुई। इससे प्रभावित होकर टोक्यो यूनिवर्सिटी ने संस्थान के छात्रों को मुफ्त शिक्षा देने का फैसला किया। अभिषेक ने सुना तो उसकी वर्षों पुरानी इच्छा एक बार फिर जाग
उठी। उसे लगा कि उसके दोनों सपने – जापान जाना और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना, एक साथ पूरे हो सकते हैं। टोक्यो यूनिवर्सिटी की टीम छात्रों के चुनाव के लिए पटना के आई। अभिषेक इसमें भी अव्वल रहा और आईआईटी प्रवेश परीक्षा से पहले ही टोक्यो यूनिवर्सिटी में उसका सलेक्शन हो गया। स्कॉलरशिप के साथ हर साल भारत आने-जाने का पूरा खर्च यूनिवर्सिटी उठाएगी। कल उसने फोन किया और बताया कि उसके लिए आगे जापान में ही नौकरी के कई अच्छे अवसर हैं।
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जीवन में सफलता के लिए प्राथमिकता का तय होना बहुत जरूरी है
सफल होने के लिए इंसान को समय का महत्व समझ कर अपने जीवन की प्राथमिकता तय कर आगे बढ़ना चाहिए। मैंने अपने अनुभव में यह सीखा है कि जीवन में एक लक्ष्य को प्राथमिकता देंगे तो बहुत कुछ कर सकते हैं। पर बहुत कुछ एक साथ करना चाहेंगे तो कुछ हासिल नहीं कर सकते।
रहीम का दोहा है- एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाए, यह जीवन के लिए बहुत महत्वूर्ण संदेश देता है। सफलता हासिल करने के लिए जीवन में प्राथमिकता तय करना बहुत जरूरी है। जीवन के लिए समय और पैसा दोनों महत्वपूर्ण है, पर यह समझना होगा कि पैसा नहीं आया तो फिर से प्रयास कर सकते हैं,
पर जो समय बीत गया वह प्रयास करने के बाद भी नहीं मिल सकता। सफल होने के लिए बहुत जरूरी है कि आप समय को कितना महत्व देते हैं। समय को लेकर एक बहुत पुरानी उक्ति है जिसे मैं अपने छात्रों को बार बार सुनाता हूँ। 1 वर्ष का महत्व वह छात्र जानता है जो अपनी वार्षिक परीक्षा में फेल हो गया। एक महीने का महत्व वह मां जानती है
जिसने अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को एक महीने पहले जन्म दिया और वह कष्ट में हैं। एक हफ्ते का महत्व वह संपादक जानता है जिसे साप्ताहिक पत्रिका निकालनी हो। एक दिन का महत्व वह मजदूर जानता है जिसे अपने परिवार में 6-7 लोगों का पालन करना हो। एक घंटे का महत्व वह अभ्यर्थी जानता है जिसका रिजल्ट आने वाला हो। एक मिनट का महत्व वह यात्री जानता है
जिसकी ट्रेन छूट गई है। एक सेकंड का महत्व वह व्यक्ति जानता है जो एक दुर्घटना से बच गया और एक मिली सेकंड का महत्व वह एथलीट जानता है जो मेडल से वंचित रह गया हो। अगर आप यह समझ गए कि समय बहुत कीमती है और इसका सदुपयोग कैसे करना है तो आप हर हाल में सफल होंगे। कई बार लोगों को कहते सुना है कि मेरे पास समय नहीं था, थोड़ा समय और होता तो अच्छा कर लेता।
याद रखिए आप समय को बढ़ा नहीं सकते, समय को बचा नहीं सकते, समय को रोक नहीं सकते पर उसका सही उपयोग जरूर कर सकते हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम अपने समय का उपयोग कैसे करते हैं। समय तो बदल नहीं सकता इसलिए आपको अपने जीवन में समय के उपयोग करने के तरीके में बदलाव लाना होगा।
आप मेहनत और प्रतिबद्धता से बहुत कुछ पा सकते हैं पर सब कुछ नहीं पा सकते। इसलिए जीवन में प्राथमिकता तय कर समय का सही उपयोग करें। सही कार्य को सही समय पर सही तरीके से किया जाए तो परिणाम बेहतर होता है। इसी को उत्कृष्टता या श्रेष्ठता कहते हैं। श्रेष्ठ होने के लिए अपनी प्राथमिकता पर फोकस करते हुए सही ढंग से सही वक्त के साथ चलें।
अगर आप चाहते हैं की आपके जीवन में बड़ा बदलाव आए तो अपनी प्राथमिकता को बहुत सोच समझ कर बदलें। याद रखें जीवन काल में आपसे बहुत लोग जुड़ेंगे पर यह आपको तय करना है
कि कौन लोग आपके लिए सही हैं। सफल होने का कोई फास्ट ट्रैक नहीं होता, आपको खुद अपना ट्रैक तय कर उस पर बढ़ना होता है। जीवन की प्राथमिकता तय करें, समय को उपयोग कैसे करना है यह तय करें, जो चीजें आपकी प्राथमिकता और समय के उपयोग में आड़े आएं उनका त्याग करें। प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ें आप सफल होंगे और दूसरे आपसे प्रेरणा लेंगे।