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Dipawali Laxmi Puja 2022 in Hindi
चमत्कारी दीपावली महालक्ष्मी पूजन विधि और मंत्र उच्चारण
सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देने पधारें मैया….
महालक्ष्मी पूजन का महत्व
मान्यता है कि कार्तिक अमावस्या को देवी महालक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ विश्व भ्रमण पर निकलती हैं। वे जहां अपनी पूजा उपासना होते देखती हैं, वहां निवास करती हैं। शास्त्रों में पूजा का विधान बताया गया है। सात्विक मन, श्रद्धाभाव और आस्था से परिवार के साथ किया गया ‘महालक्ष्मी पूजन’ सार्थक होता है।
पूजन सामग्री
• रौली, मौली, धूप-अगरबत्ती, कपूर, केसर, चंदन, चावल, जनेऊ 6, जोत, पान 11, साबुत सुपारी 18, फूलमाला 2, दूर्ब, लौंग-इलायची, इत्र, फल फूल, गाय का कच्चा दूध, दही, शहद, गंगाजल, देसी घी, आम- पीपल-बड़ आदि के पत्ते (पंच पल्लव), हल्दी की गांठ, गुड़, सरसों, नारियल 2, गिरी गोला, लकड़ी की चौकी मिट्टी का दीपक बड़ा 1, छोटे 15, घंटी
• महालक्ष्मी-गणेश की मूर्ति, जिसमें महालक्ष्मी ‘धनवर्षा’ करती दिखें; वस्त्र आभूषण, गणेश-महालक्ष्मी पाना (चित्र), अनार की या साधारण कलम, बहीखाते, तांबे या मिट्टी का नया कलश, पीला-सफेद-लाल वस्त्र, सिक्के, रुपए, श्रीयंत्र ।
• खील बताशे, मिठाई- मेवे, ईख, तुलसी दल, कमल गट्टा या माला।
पूजन के बाद
■ महालक्ष्मी माता के सम्मुख एक बड़ा दीपक प्रज्वलित रहे, जो ‘अखंड’ पूरी रात जलता रहे। रातभर झाडू नहीं लगाना चाहिए। • महालक्ष्मी के निमित्त यज्ञ करना चाहें तो पूजन के बाद कर सकते
हैं। महालक्ष्मी साधना हेतु जाप करना चाहें तो पूजन के बाद ॐ श्री श्रीयै नमः, महालक्ष्म्यै नमः में किसी एक मंत्र का जाप करें।
• आचार्य पं. गोपाल पाठक संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी
साभार🙏🏻 दैनिक भास्कर
Diwali पूजन के मुहूर्त 2022
चौघड़िया अनुसार
गृहस्थों के लिए
प्रदोष काल शाम 5:51 से 8:22 बजे तक । गृहस्थों के लिए शुभ
वृषभ लग्न
शाम: 7:07 से 9:05.
चंद्र की होरा
रात्रिः 8:32 से 9:32
किसानों के लिए पूजन के मुहूर्त
गोधूलि
शाम 5:40 से 6:25
व्यापारियों के लिए पूजन के मुहूर्त
चंचल शाम 5:51 से 7:26
लाभ
रात्रि: 10:34 से 12:11
निशीथ काल
रात्रि 11:43 से 12:40
सिंह लग्न
रात्रि : 1:45 से 03:46
न्यू स्टार्टअप्स के लिए.
शुक्र की होरा शाम: 6:32 से 7:32
विद्यार्थियों के लिए पूजन के मुहूर्त
बुध की होरा शाम 7:32 से 8:32
– पंडित अमर डब्बावाला (उज्जैन)
महालक्ष्मी अष्टकमलक्ष्मी की सबसे सशक्त आराधना
पुराणों में कथा है कि लक्ष्मीजी की कृपा पाने के लिए इंद्र ने महालक्ष्मी अष्टकम की रचना और पाठ किया था। इस तरह इंद्र ने स्वर्ग का राज पाया। महालक्ष्मी अष्टकम के आठ दोहों में लक्ष्मी के स्वरूप का वर्णन है
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते । शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तुते ।।1।। भावार्य- आप श्रीपीठ पर विराजित हैं, देवता आपको
पूजते हैं। आप महामाया है। हे महालक्ष्मी आप हाथों
में शंख, चक्र और गदा रखती हैं। आपको प्रणाम
नंमस्ते गरुडारूदे कोलासुरभयंकरि । सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तुते ।।2।।
भावार्थ- आप गरुड़ पर विराजित रहती है और कोलासुर दानव को भय देने वाली हैं। आप ही सभी पापों को हरती हैं। भगवती महालक्ष्मी आपको प्रणाम।
सर्वज्ञे सर्वधर सर्वदुष्टमयंकरित
सर्वदुख हरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तुते ॥३॥ भावार्य आप सब कुछ जानती हैं। सबको वर देने वाली, सभी दुष्टों को भय देने वाली और दुःखों को दूर करने वाली हैं। आपको नमस्कार ।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्ति प्रदायिनी। मन्तमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तुते ॥4॥ भावार्थ- आप सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली
हैं। भगवती महालक्ष्मी! आपको प्रणाम।
आयंतरहिते देवि आयशक्ति महेश्वरि ।
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोऽस्तुते ।।5।। मावार्य हे आदिशक्ति आपका न कहीं आरंभ है और न ही कहीं अंत है। हे महेश्वरी। आप योग से प्रकट
हुई है। भगवती महालक्ष्मी आपको प्रणाम।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे। महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥6॥
भावार्य- आप स्थूल है, सूक्ष्म है। आप महारुद्र का रूप है। आप महाशक्ति है। आप बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हैं। महालक्ष्मी आपको प्रणाम।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि । परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥7॥ – परब्रह्मस्वरूपिणी देवी आप कमल के आसन पर विराजमान हैं। हे परमेश्वरि हे जगदम्बा हे महालक्ष्मी आपको प्रणाम।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते । जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोस्तु ते॥8॥
भावार्य आप श्वेत वस्त्र पहनती है। कई प्रकार के आभूषण धारण करती है। विश्व आप से ही सुख समृद्धि प्राप्त करता है। हे महलक्ष्मी आपको प्रणाम।
ॐ श्रीं श्रियें नमः
श्री यानी लक्ष्मी के स्वागत को आतुर उपासक दीपावली पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। यह कामना केवल धन की नहीं है, सुख, आरोग्य, समृद्धि और सद्गुणों की भी है।
दीप पर्व सुख लाए, सफल हो, इसी कामना से पूजन आरंभ करें…
मां लक्ष्मी किन लोगों के पास रहती हैं जानेंगे हम शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती कांची कमाकोटी पीठ के शंकराचार्य के द्वारा
इस आर्टिकल के लास्ट में
लक्ष्मी आराधना व स्तुति का पर्व है दीपावली। लक्ष्मी पूजन में कोई कमी ना रह जाए, सबका यही प्रयास होता है। सुख-सौभाग्य-समृद्धि का वास घर में हो, सबकी यही कामना होती है। लक्ष्मी पूजन में जटिल प्रक्रियाएं नहीं हैं, लेकिन पूजन का एक सिलसिला अवश्य है, जिसका पालन करने से पूजन के उचित ढंग से सम्पूर्ण होने का सुख पाया जा सकता है।
दीपावली लक्ष्मी पूजन विधि और मंत्रोच्चार diwali puja vidhi
सरल तरीके से लक्ष्मीपूजन विधि बता रहे हैं मुंबई के महालक्ष्मी मंदिर ट्रस्ट के पंडित प्रकाश श्रीराम
आसन पर लक्ष्मी-गणेश को रखें। देवी के आगे सिक्के, गल्ला, बही खाते, नया खाता रखें। देवी को सूखा धनिया, गुड़, बताशे, चावल (लावा) का भोग शुभ माना जाता है। लक्ष्मी के साथ सरस्वती और कुबेर भी होते हैं।
पूजन विधि: अपने ऊपर, आसन और पूजन सामग्री पर
3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छिड़काव कर यह
शुद्धिकरण मंत्र पढ़ें
ॐ अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सबाह्याभ्यंतर शुचिः॥
यह मंत्र पढ़ते हुए आर्थमंत करें औसहाथ धोएं ॐ केशवाय नमः, ॐ माधवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः
पुनः आसन शुद्धि मंत्र बोलें
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता । त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥
अनामिका अंगुली से चंदन/रोली लगाते हुए यह मंत्र पढ़ें
चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।
कलश पूजा
कलश में सिक्का, सुपारी, दुर्वा, अक्षत, तुलसी पत्र और जल भरकर कलश पर आम पल्लव रखें। नारियल पर वस्त्र लपेटकर कलश पर रखें।
हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर वरुण देवता का आह्वान मंत्र पढ़ें
आगच्छ भगवान देव स्थाने चात्र स्थिरो भव । यावत् पूजा समप्ती तावत्वं सुस्थीरो भव ।।
श्री गणेश पूजा
पहले गणेश जी की पूजा इस मंत्र से करें।
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।।
हाथ में अक्षत लेकर आवाहन मंत्र का जाप करें
ॐ गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ ।। अक्षत पात्र में अक्षत छोड़ें। गणेश जी को प्रसाद चढ़ाएं। पान सुपारी, फूल अर्पित करें। कलश पूजन के बाद सभी कुबेर,
इंद्र सहित सभी देवी-देवता का स्मरण करें।
लक्ष्मी पूजन विधि मंत्र
मां लक्ष्मी का ध्यान करें और मूल मंत्र पढ़े
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पन्यै च
धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ ॥
अब हाथ में अक्षत लेकर बोलें
ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ।
स्नान कराएं और वस्त्र अर्पित करें
प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं, चंदन लगाएं। पुष्प चढ़ाएं और माला पहनाएं। दूध, शकर और सूखे मेवों का भोग लगाएं। इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं। फिर मां लक्ष्मी को प्रसाद अर्पित करें। पान, सुपारी चढ़ाएं। मां लक्ष्मी श्रीसूक्त के 16 मंत्रों का पाठ करें।
मां सरस्वती का ध्यान करें और यह मूल मंत्र पढ़ें
ॐ ब्रह्म पत्नीच विद्महे महावाण्यैच धीमहि तन्त्रः सरस्वती प्रचोदयात्।।
फिर पुष्प अर्पित करते हुए मंत्र पढ़ें:
ॐ महालक्ष्म्यै नमः
लक्ष्मी पूजन के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें। ॐ नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च, जगदिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः । अब पूजन के बाद क्षमा प्रार्थना और आरती करें।
आरम्भ इस स्तोत्र से करें..
गतिस्तवं गतिस्तवं त्ममैका भवानि !
विवादे विषादे प्रवासे प्रमादे,
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये
अरण्ये अरण्ये सदा मां प्रपाहि,
• गतिस्त्वं गतिस्तवं त्वमेका भवानि !
इसका अर्थ है…. विवाद में, विषाद में, प्रवास में, प्रमाद में,
जल में, अग्नि में, पर्वत पर, शत्रु के बीच में, जंगल में, शरण में आने पर हे मां, सदा मेरी रक्षा करना। तू ही मेरी एकमात्र गति है। लक्ष्मी से संबंधित स्तोत्रों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह स्तोत्र भौतिक कामनाओं की पूर्ति तथा यश-सौभाग्य प्राप्त करने का अमोघ साधन माना जाता है।
इस क्रम से करें लक्ष्मी पूजन
लक्ष्मी पूजन में विधि सरल है, लेकिन पूजन का क्रम महत्वपूर्ण है।
पूजा करते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए पूजन आरंभ करने से पहले लक्ष्मी पाना (या लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाएं), पूजा की चौकी या पटा, पूजन सामग्री, गोल सुपारी, कांस्य कलश, नारियल, नैवेद्य, फूल, पान का पत्ता, अशोक या आम के पत्ते, प्रचलित मुद्रा (एक या पांच रुपये का सिक्का), हल्दी की गांठ, लाल वस्त्र, दीये, अखंड दीप, खील, बताशे, पंचामृत, तेल व घी की उपलब्धता सुनिश्चित कर लें।
Diwali Puja Vidhi
एक कलश व दीया अलग से रखें। कलश में जल भरकर एक चम्मच रखें। एक प्लेट या आचमनी रखें। पूजा की थाली में रोली (कुंकुम), मेहंदी, पिसी हल्दी, अक्षत, मौली (कलावा), धूप, केसर, चंदन, अष्टगंध, इत्र की शीशी, कपूर, साबुत गोल व लम्बी सुपारी, हल्दी की गांठ, गुड़ व चांदी का सिक्का रख लें।
सबसे पहले दीवार पर पाना लगाएं। • उसके नीचे पटा या चौकी रखें। चौकी के सामने थोड़ा स्थान
छोड़ते हुए आसन बिछाकर बैठें। 4 चौकी पर अष्टगंध से अष्टदल कमल बनाएं और उस पर
पीला/ लाल वस्त्र बिछाएं। • चौकी के बीच में, जहां अष्टदल कमल का केंद्र होगा, उसके ऊपर बिछे कपड़े पर एक सिक्का व हल्दी की गांठ रखें। यह मुद्रा पूजन पश्चात तिजोरी या कोष में संभालकर रखी जाती है। इसे खर्च नहीं किया जाता। यह कोष में लक्ष्मी के रहने व बढ़ते रहने का प्रतीक है।
• अगर लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमाएं रखते हैं, तो इस सिक्के के पीछे उन्हें विराजित करें। उपासक सिक्के की दाईं तरफ, कमलदल के ऊपर एक गोल सुपारी रखें।
+ उपासक अपने दाएं हाथ की तरफ, भूमि पर थोड़े अक्षत रखकर अखंड दीप रखें। इसमें तिल या मूंगफली का तेल डालकर रखें। दीप की हल्दी-कुंकुम से पूजा कर हल्दी-कुंकुम-चंदन मिश्रित पुष्प समर्पित करें।
उपासक अपने बाएं हाथ की तरफ़, भूमि पर थोड़ा अक्षत रखकर कांस्य कलश में पानी भरकर, उसमें एक सुपारी और सिक्क डालकर पांच अशोक या आम के पत्ते सजाते हुए उस पर इस तरह नारियल रखें कि नारियल का मुख भाग उपासक की ओर रहे और पूंछ भगवान की ओर। कलश पर मौली बांधे, रोली से स्वस्तिक बनाएं व नारियल पर सिक्का रखकर पूजा करें। हल्दी कुंकुम अष्टगंध पुष्प में लगाकर पुष्प समर्पित करें।
कलश में डाले गए सिक्के व सुपारी को बाद में एक पीले वस्त्र में बांधकर साल भर रखा जाता है। पिछले वर्ष वाली सुपारी को इस साल विसर्जित कर सकते हैं और सिक्के को धोकर किसी कन्या को दें।
कलश के पास फूल बत्ती का दीप प्रज्वलित करके गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती जी को आमंत्रित कर पुष्प समर्पित करें। + शुद्धि की भावना करते हुए पुष्प से अपने ऊपर जल छिड़कें।
फिर सारी पूजन व उपासना सामग्री पर जल के छींटे दें।
4 लक्ष्मी जी के पाने को दस सेकंड ध्यान से निहारें और वही स्वरूप आपके पूजा स्थान पर साक्षात विराजमान है ऐसा दृढ़ विश्वास कर हाथ जोड़कर लक्ष्मी जी का ध्यान करें।
• आचमनी से हाथ में तीन बार जल लेकर लक्ष्मी जी के अभिषेक की भावना से भूमि पर छोड़ें, इसके बाद पुष्प से ही जल छिड़ककर स्नान कराएं। फिर पंचामृत से स्नान कराएं। + वस्त्र के प्रतीक स्वरूप मौली लेकर लक्ष्मी-गणेशजी की प्रतिमा
पर अर्पित करें या पाने के दोनों तरफ मेहंदी की मदद से पहनाएं। + इसके बाद आभूषण अर्पित करें। घर के आभूषण रख सकते हैं या हल्दी से पीले किए चावलों को आभूषण की भावना करते हुए भी चढ़ा सकते हैं।
+ अष्टगंध समर्पित करें। साथ ही रोली, कुंकुम, अक्षत आदि से क्रमशः गणेश, लक्ष्मी व सरस्वती जी की पूजा करें। तत्पश्चात पुष्प में हल्दी, कंकुम, रोली, मेहंदी, चावेल लगाकर
पूजा करते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए
लक्ष्मी जी के चरणों की पूजा करें।
अष्टगंध में हल्का पानी मिलाकर, लक्ष्मी जी के चारों हाथों पर लगाएं। फिर आचमनी में जल छोड़ें।
4 पुष्पमाला व फूल अर्पित करें- गणेश जी को पीला, लक्ष्मी जी को लाल और सरस्वती जी को श्वेत । ।
• धूप जलाएं व जलती धूप को लक्ष्मी जी की तरफ रखते हुए हाथ से उनकी तरफ आरती की तरह दें। ध्यान रखें धूप का धुआं नहीं
देना है। जलती धूप बुझा दें और धुएं की सुगंध फैलने दें।
+ एक घी के दीपक से भी इसी तरह देवी की ओर आरती की तरह
दें। धूप व दीपक को एक तरफ रख दें। घंटी बजाकर नैवेद्य, फल, मिठाई, खील-बताशे
समर्पित करें।
14 एक पान के पत्ते पर इलायची रखकर, उसका बीड़ा बनाकर लौंग से बंद करें व लक्ष्मी जी को अर्पित करें।
4 सिक्का पुष्प चढ़ाएं, जिसे पूजा के बाद में घर की कन्या या गृहिणी के आंचल में डाल दें। गृहिणी इसे संभालकर रखें। इस समय सभी परिजन शांत चिंत्त से लक्ष्मी मंत्र- ‘ॐ ह्रीं
क्लीं महालक्ष्म्यै नमः’ का यथाशक्ति जाप करें।
• आरती की थाली में पांच या 11 घी के दीपक जलाएं। साथ ही 15 या 23 दीये पहले प्रज्वलित करके रखें। आरती के 11 दीपक में से एक भगवान के प्रास, दूसरा रसोई, तीसरा तुलसी, चौथा ड्रॉइंगरूम, दो मुख्य द्वार पर, चार घर के कोनों पर रखें और एक किसी परिचित के घर दीप दान करें।
+ आरती करें। पूजन के सफल होने की प्रार्थना करें। ग़लती होने के लिए मां से क्षमा मांगें।
विशेष
+ पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पूजा करें। कांस्य का कलश ना हो, तो स्टील के कलश पर हल्दी का लेप करके भी पूजा कर सकते हैं। गुजरिया के दीये 15 या 23 में नहीं गिने जाते हैं।
दीपावली पर पूरे देश में मां लक्ष्मी की पूजा का अलग अलग विधान है। जैसे कहीं लक्ष्मी के साथ काली की पूजा होती है। कहीं लक्ष्मी के साथ सरस्वती की पूजा होती है। कुछ जगहों पर कुबेर के साथ पूजा होती है। शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा धन और ज्ञान दोनों का एक साथ होना है।
इसे सामान्य शब्दों में समझें कि यदि धन आएगा तो उसे संभालने के लिए ज्ञान और विवेक की भी जरूरत पड़ेगी। बुद्धि के इस्तेमाल से धन को सही तरीके से खर्च करना भी आना चाहिए। दीपावली के दिन मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, गंगा और समस्त देवी-देवताओं की पूजा सबसे पवित्र मानी जाती है। इस दिन सुबह तेल से मालिश के बाद स्नान करने पर मां लक्ष्मी सारे दुख दर्द दूर कर देती हैं।
दरअसल हरणासुर नाम के दानव ने देवलोक में देवताओं का जीना मुश्किल कर दिया था। मां लक्ष्मी ने इस राक्षस से बचने के लिए खुद को तिल के पौधे में छिपा लिया
था। नरगासुर के वध के बाद ही मां लक्ष्मी इस पौधे से बाहर निकलीं और उन्होंने इस पौधे को वरदान दिया कि जो कोई भी दीपावली के दिन तिल के तेल से मालिश कर स्नान करेगा, उसके समस्त दुख-दर्द दूर होंगे। ऋषि व्यास ने ‘व्यास विष्णु रूपः’ स्तुति में मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने की वैज्ञानिक विधि बताई है।
इसके मुताबिक कुशल कर्मी, उत्तम व्यक्तित्व, मेहनती, हमेशा खुश रहने वाले और जो मुश्किल वक्त में दूसरों द्वारा की गई मदद को कभी नहीं भूलता है, शांत और रचनाशील जैसे गुणों से संपन्न लोगों के पास ही लक्ष्मी रहती हैं। ब्रह्म सूक्त में भी कहा गया है कि लक्ष्मी दानवीर, बुजुर्गों से परामर्श लेने वाले, अपने समय को बर्बाद नहीं करने वाले और अपने निर्णय में अडिग रहने वाले, घरों को साफ रखने वाले, अनाज की बर्बादी नहीं करने वाले लोगों के पास ठहरती हैं।
ऋषि व्यास ने इस बात का भी उल्लेख किया है, जहां लक्ष्मी नहीं ठहरतीं। जैसे जो व्यक्ति काम नहीं करता, जो अनुशासित नहीं है, जो अनैतिक काम करता है, जो दूसरे से ईर्ष्या रखते हैं, आलसी और जो हर स्थिति में उत्साह विहीन बने रहते हैं। ऐसे लोग मां लक्ष्मी की कृपा के पात्र कभी नहीं बनते हैं।
लक्ष्मी के रूप जीवन को ऐसे उत्साह, साहस, समृद्धि और खुशहाली देती हैं अष्ट लक्ष्मी
अष्ट लक्ष्मीः जीवन के हर क्षेत्र में सुख और समृद्धि के 8 रूप
1) आदि लक्ष्मी
इन्हें मूललक्ष्मी, महालक्ष्मी भी कहा जाता है। श्रीमद् देवीभागवत पुराण के अनुसार आदिलक्ष्मी ने सृष्टि की रचना की। उन्हीं से त्रिदेव और महाकाली, लक्ष्मी व महासरस्वती प्रकट हुई। इस दुनिया के पालन और संचालन के लिए उन्होंने विष्णु से विवाह किया। महालक्ष्मी जीवन उत्पन्न करती हैं। सुख, समृद्धि देती हैं।
5) धान्य लक्ष्मी
लक्ष्मी का ये रूप प्रकृति के चमत्कारों का प्रतीक है। वे समानता सिखाती है, क्योंकि प्रकृति सभी के लिए समान है। कोई भी भोजन के बिना नहीं रह सकता है। धान्य लक्ष्मी के 8 हाथ हैं, जिनमें कृषि उत्पाद भी होते हैं। अन्नपूर्णा का रूप है। धान्य लक्ष्मी अनाज और पोषण की देवी हैं। इनकी कृपा से घरों में धान्य बना रहता है।
2) धार्या लक्ष्मी
इन्हें वीर लक्ष्मी भी कहा जाता है। भौतिक और आध्यात्मिक जरूरतों को पूरा करने में आने वाली रुकावटों को दूर करती हैं। ये अकाल मृत्यु से बचाती हैं। इन्हें मां कात्यायनी का रूप भी माना जाता है, जिन्होंने महिषासुर का वध किया था। धार्या लक्ष्मी युद्ध में विजय दिलाती है। ये वीरों की रक्षा करती है।
6) गज लक्ष्मी
ये भूमि की उर्वरता की देवी हैं। इस रूप में दोनों ओर से इन पर हाथी जल वरसाते हैं। कमल पर विराजित गजलक्ष्मी के चार हाथ हैं, जिनमें वे कमल का फूल, अमृत कलश, बेल और शंख धारण किए हुए हैं। ये पशु धन को देने वाली देवी हैं। गज लक्ष्मी पशुधन से समृद्धि देती है। वे जीवन में पशुओं से समृद्धि का प्रतीक है।
3) संतान लक्ष्मी
इस रूप में देवी की पूजा स्कंद माता के रूप में भी होती है। कुछ रूपों में इनके चार तो कुछ में आठहाथ दिखाए गए हैं। इनमें से एक अभय और एक वरद मुंह में रहता है। ये गुणवान और लंबी उम्र जीने वाली स्वस्थ संतान का आशीर्वाद देती हैं। संतान लक्ष्मी बच्चे के लिए स्नेह का प्रतीक है। ये पिता को कर्तव्य, मां को सुरुदेती है।
7) विजय लक्ष्मी
इन्हें जय लक्ष्मी भी कहा जाता है। इनके आय हैं, जो अभय के लिए काम करते हैं। कोर्ट-कचहरी की चिंताओं से मुक्ति और विजय के लिए देवी इस रूप को पूजा जाता है। ये मुश्किल परिस्थिरियों में साहस बनाए रखने की प्रेरणा देती हैं। विजय लक्षीहर परेशानी में विजय दिलाती है। निडरता देती है।
4) विद्या लक्ष्मी
ये शिक्षा ज्ञान और विवेक की देवी हैं। बुद्धि और ज्ञान का बल देती है। विद्या लक्ष्मी आत्म-संदेह और असुरक्षा दूर करती हैं। आत्मविश्वास देती हैं। विद्यार्थी वर्ग को लक्ष्मी के इस रूप का ध्यान करना चाहिए। आध्यात्मिक जीवन जीने में भी मदद करती हैं। विद्या लक्ष्मी व्यक्ति की क्षमता और प्रतिभा को बाहर लाती है।
8) धन लक्ष्मी
जब भगवान वेंकटेश (विष्णु) ने कुबेर से कर्ज लिया तो लक्ष्मी ने कर्ज से मुक्ति दिलाने के लिए यह रूप लिया था। इस रूप की पूजा कर्ज मुक्ति के लिए की जाती है। इनके छह हाथ है। धन लक्ष्मी पैसा, सोना, संपत्ति तो देती ही है, इच्छाशक्ति, साहस, दृढ़ संकल्प, उत्साह भी देती हैं। -पं. मनीष शर्मा – jyotishsansar@gmail.com
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