Success speech in hindi कभी किसी को आपसे ज्यादा मेहनत ना करने दें
‘अपने चीयरलीडर खुद बनिए, स्वयं पर अपना भरोसा कम मत करिए’
• कभी भी किसी को आपसे ज्यादा मेहनत नहीं करने दें। जब मैं छोटी थी तो अक्सर कहा करती थीं कि मुझे बाहर निकलकर मेहनत करनी ही होगी क्योंकि रशिया में कोई ना कोई नंबर वन बनने के लिए मेहनत कर रहा होगा, मुझे उससे ज्यादा मेहनत करनी है। तो आप कह सकते हैं कि रूस में खेल रहे खिलाड़ियों ने मुझे कैलिफोर्निया में रहते हुए मेहनत करने को प्रेरित किया। मैं पूरे वक्त यह सोचती थी कि कहीं तो कोई होगा जो मुझसे ज्यादा मेहनत कर रहा होगा और मुझे उसे हराना है।
आप जो भी करें अगर उसमें सफल होना है तो आपको कड़ी मेहनत करनी ही होगी। सफल होने से मेरा मतलब केवल भौतिक
सफलता से नहीं है, दिमागी शांति भी यही सफलता है। तो किसी भी काम को करें तो इस मेहनत का मजा लें। जब भी कोई आपसे कहे कि तुम से ना हो पाएगा, तो जान जाओ कि तुमसे ही होगा। लोग ऐसा इसलिए बोलते हैं कि वो नहीं कर पाते हैं और नहीं चाहते कि आप हासिल कर पाओ।
• अगर मैं एक स्मैश भी करती हूं तो दिल से करती हूं। जब आप कोई काम दिल से नहीं करते हैं। तो यह अहसास कभी ना कभी तो होता ही है कि काश! इसे पूरे दिल से किया होता। ऐसा अक्सर तब होता है जब आप बूढ़े होने लगते हैं। मैं कहूंगी कि अपने लिए कोई अफसोस की जगह ना रखें, और जो भी करें पूरे दिल से करें।
‘मुझे यह बात आप सभी को बतानी है कि यह मायने नहीं रखता कि आपकी उम्र क्या है, आप कितने जवान हैं, कितने बूढ़े हैं… आप हर वो चीज हासिल कर सकते हैं जो आपने आपके दिमाग के लिए तय की है। मैं हमेशा कहती हूं ‘अगर मैं कर सकती हूं तो कोई भी कर सकता है। मेरे ऐसा कहने के पीछे वजह यह है कि मुझे ऐसा बचपन नहीं मिला जिसमें तमाम चीजें मुझे हाथ में दी गई हों। मुझे इनके लिए कड़ी मेहनत करनी होती थी, अपने आपको झोंकना होता था, दृढ़-संकल्पित होना होता था…और मैं ऐसा करती थी।
खेल के मैदान के बाहर भी, फिर वो शिक्षा की बात हो या किसी व्यापार की… सभी में अनुशासन, कड़ी मेहनत और पक्के इरादे की जरूरत होती है। इनमें भी सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है खुद पर यकीन करने की क्योंकि मेरे जैसे कई लोग आप पर भरोसा नहीं करेंगे, लेकिन आपको खुद पर विश्वास बनाएं रखना है। आप ही अपने चीयर लीडर होते हैं। आपको ही अपना सबसे बड़ा और बेस्ट चीयरलीडर बनना है … खुद को अपना सहयोग देते रहना है और कभी भी अपने पर भरोसा कम नहीं करना है।
मेरे लिए यह सफर कभी आसान नहीं रहा। मैं यहां इसलिए नहीं खड़ी हूं कि मुझे यह सफलताएं मिलीं… मुझे मेरे उतार-चढ़ाव भी खूब याद हैं। जीवन में कई मुश्किलें रहीं। एक दौर में मेरे दोनों फेफड़ों में खून के थक्के जम गए थे। उसी समय मुझे विवादों और हादसों से भी गुजरना पड़ा था। मैं जिन लोगों की तरह नहीं नजर आ रही थी, उन्होंने मुझे नीचा दिखाने में कोई
कसर नहीं छोड़ी। मैं उनसे ज्यादा मजबूत दिखती थी। मेरे शरीर के रंग के कारण भी अजीब बर्ताव होता था। मैं महिला थी, इस वजह से भी लोग अनदेखा कर देते थे। मेरे आलोचक थे, जो कहते थे कि मैं कभी भी ग्रैंड
स्लैम फिर से नहीं जीत पाउंगी। जब मैं केवल नंबर सात पर होती थी और आज मैं 21 ग्रैंड स्लैम टाइटल्स जीत चुकी हूं और बढ़ती ही जा रही हूं।’
(2015 का स्पोर्ट्स पर्सन अवॉर्ड लेते वक्त सेरेना विलियम्स)
इंस्पायरिंग | चोट लगने से विम्बलडन से बाहर हुईं सेरेना विलियम्स चर्चा में हैं
Second success speech hindi
सफलता… एक मानसिक स्थिति है सफलता के बारे में ब्रिटनी का कहना है ‘मेरे लिए सफलता एक मनः स्थिति है। मैं महसूस करती हूं कि कुछ हासिल करना या किसी को परास्त करना, सफलता नहीं है। आप जैसे हो, वैसे ही खुश हो… यह सफलत है।’
जीवन में रहे उतार-चढ़ाव
ब्रिटनी कहती हैं – ‘आप दुनिया का क्रूरतम रूप देख सकते हैं, दूसरी तरफ सबसे खूबसूरत रूप भी नजर आता है। यह एक अति से दूसरी अति में जाने जैसा है। इन दोनों का अनुभव लेना बनता है क्योंकि एक के बिना. आप दूसरा नहीं देख सकते।
2008 में जब पॉप स्टार ब्रिटनी स्पीयर्स को ब्रेकडाउन की वजह से अस्पताल में भर्ती किया गया था तो कोर्ट ने उनके दो बेटों की कस्टडी उनके पिता केविन फेडरलाइन को दे दी थी। ब्रिटनी को कानूनी संरक्षण में रखा गया है जिसे उनके पिता जेमी स्पीयर्स कंट्रोल करते हैं। आज एक दशक से भी ज्यादा से ब्रिटनी का अपने पर्सनल फाइनेंस पर कोई नियंत्रण नहीं है। इसी के खिलाफ अब वो कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। और इस लड़ाई में उनका साथ लाखों फैन्स दे रहे हैं और ‘फ्री ब्रिटनी’ कैंपेन चला रहे हैं।
ब्रिटनी की जिंदगी के शुरुआती हिस्से में केवल संगीत था, मासूमियत थी। 39 साल की उम्र और 37 साल. का संगीत प्रेम, ये हैं ब्रिटनी स्पीयर्स। दुनिया ने उन्हें 1998 से जाना, लेकिन उनकी मशहूर होने की कोशिश दो साल की उम्र से शुरू हो गई थी। दो साल की ब्रिटनी, हेअर ब्रश को माइक जैसा पकड़कर गाया करती थीं। 2 दिसंबर 1981 को मिसिसिपी में पैदा हुईं ब्रिटनी ने पहली बार पब्लिक में ‘वॉट चाइल्ड इज दिस’ गाया, तब वो केवल चार साल की थीं। जब
छह साल की हुईं तो पहला टैलेंट शो जीता। वो मानती हैं कि उन्होंने छोटी उम्र में ही जान लिया था कि उन्हें भविष्य में क्या बनना है।
जब उन्हें उम्र के कारण शो के लिए मना कर दिया गया
1993 में डिज्नी चैनल के ‘द ऑल न्यू मिकी माउस क्लब’ में उन्हें जस्टिन टिंबरलेक, क्रिस्टिना आग्युलेरा, जेसी चैज जैसे सितारों के साथ देखा गया। लेकिन इसी शो में उन्हें तब आने से रोक दिया गया था जब वो महज आठ
साल की थीं। कास्टिंग डायरेक्टर्स ने उन्हें एक्टिंग, सिंगिंग और डांसिंग सीखते रहने की सलाह दी थी। फिर उन्होंने 11 साल की उम्र में इस शो पर मौजूदगी दर्ज की। इस बीच उन्होंने टीवी कमर्शियल्स किए और न्यूयॉर्क के प्रोफेशनल परफॉर्मिंग आर्ट्स स्कूल में तीन साल पढ़ाई की।
6 वन मोर टाइम’ से बनीं पॉप संगीत की सुपरस्टार
15 साल की उम्र में ब्रिटनी के डेमो टेप ने उनकी झोली में जाइव रिकॉर्ड्स
की एक डील. डाल दी। 1998 में उनका सिंगल…..बेबी वन मोर टाइम’ रिलीज हुआ। कैथलिक स्कूल गर्ल ड्रेस में वो इस वीडियो में नजर आई और इसके बोल भी विवादित रहे । बावजूद इसके गाना जबरदस्त हिट साबित हुआ और 1999 में जब यह एलबम रिलीज किया गया तो इसने सभी चार्ट्स के टॉप पर पहुंचने में देर नहीं की। केवल अमेरिका में ही इसकी एक करोड़ से ज्यादा कॉपियां बिक गई थीं। 2000 में जब उनका दूसरा एलबम ‘उप्स… आय डिड इट अगैन’ रिलीज हुआ तो उस पर भी इस सफलता का असर दिखा। एक हफ्ते में ही इस एलबम की 1.30 करोड़ कॉपियां बिक चुकी थीं। यह किसी भी सोलो आर्टिस्ट के लिए पहले हफ्ते में ब्रिकी का एक रिकॉर्ड था।
3nd speech
‘जीवन में मौके बस के समान हैं… हमेशा एक के बाद दूसरा आ ही रहा होता है’
रिचर्ड कहते हैं….
• अपना खुद का बिजनेस शुरू करना कोई काम नहीं है, यह तो जीने का तरीका है।
• कभी भी असफलताओं से निराश मत होइए, इनसे सीखिए और फिर शुरू कीजिए। भौतिक चीजें खूब खुश करती हैं, लेकिनये कतई आवश्यक नहीं हैं।
• व्यापार के मौके, बसों के समान हैं… हमेशा ही एक ना एक आ रहा होता है।
योजना बनाने में हैं माहिर
डिस्लेक्सिया की वजह से पढ़ाई में वो कभी अच्छे नहीं रहे। स्कूल की चंद अच्छी यादों में शार्लेट शामिल हैं, जो स्कूल हेडमास्टर की बेटी थीं। शार्लेट को रिचर्ड पसंद थे और दोनों अक्सर मिलते थे। एक दिन एक टीचर ने रिचर्ड को देख लिया। जब हेडमास्टर ने पूछा कि वो उनके घर में क्या कर रहे थे तो रिचर्ड का जवाब था ‘आपकी बेटी से मिलकर लौट रहा था। उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। अपने पैरेंट्स के गुस्से से बचने के
लिए उन्होंने एक नकली सुसाइड नोट लिखा और एक दोस्त को यह कहते हुए दिया कि इसे कल खोलना। इतना कहकर वो स्कूल की पहाड़ी की तरफ बढ़ने लगे। रिचर्ड जानते थे दोस्त तुरंत ही लेटर खोलेगा, यही हुआ। पूरा स्कूल उनके पीछे दौड़ा। पैरेंट्स की डांट से तो वो बचे ही, स्कूल से निकालने का आदेश भी वापस ले लिया गया। रिचर्ड का इस तरह सोचना बताता है कि व्यापार को बुरे दौर से वो आसानी से कैसे निकालते हैं।
रिचर्ड के बारे में मशहूर है कि शायद उन्हें भी नहीं पता होगा कि उनकी कंपनियों में कितने आइडियाज रोज पल रहे हैं। उनके ‘वर्जिन’ ग्रुप में 30 देशों में फैलीं 400 से ज्यादा कंपनियां हैं और लगभग सभी अलग क्षेत्रों में काम कर रही हैं। रिचर्ड बिजनेस में तयशुदा तरीके नहीं अपनाते। इसका अंदाजा आपको उनके पहले व्यापार के किस्से से हो जाएगा।
18 जुलाई 1950 को इंग्लैंड के सरे में पैदा हुए रिचर्ड ने 11 साल की उम्र में अपने स्कूल की छुट्टियों के दौरान पहली बार तय किया कि खुद का कुछ शुरू किया जाए। साथ मिला दोस्त निक पॉवेल का। दोनों ने तय किया कि बजरीगार (छोटे पंछी) की ब्रीडिंग का व्यापार किया जाए। इसके लिए पिता एडवर्ड जेम्स ब्रेन्सन ने दोनों बच्चों को एक बड़ा पिंजरा तैयार करके दिया। यहां बजरीगार की संख्या खूब तेजी से बढ़ने लगी। छुट्टियां खत्म होने पर बच्चों को बोर्डिंग स्कूल लौटना पड़ा और पंछियों की देखभाल का जिम्मा रिचर्ड के पैरेंट्स पर आ गया। बाद में उनकी मां ईव ने उन्हें चिट्ठी में लिखा कि चूहों ने पिंजरे में घुसकर पंछियों को खाना शुरू कर दिया था। सो ईव ने पिंजरे के दरवाजे खोलकर सभी बजरीगार आजाद कर दिए। इससे रिचर्ड परेशान नहीं हुए बल्कि वो खुश थे कि उन्होंने सच्चे प्रोफेशनल की तरह काम को अंजाम दिया। रिचर्ड की अंतरिक्ष यात्रा भी उनके नए बिजनेस वेंचर का ट्रायल रन ही है। उनकी योजना है कि स्पेस टूरिज्म में लोगों से बड़ी रकम वसूल यात्राएं करवाई जाएं।