संघर्ष से सफलता की कहानी Successful Story Hindi —Success stories in Hindi

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आर्थिक तंगी से परीक्षा तक छूटी, फिर भी आईआईटी से बना इंजीनियर Success stories in Hindii of Anand kumar supper30

संघर्ष से सफलता की कहानी Successful Story Hindi —Success stories in Hindi

आज विश्वजीत वर्मा बैंगलूस में है। सबकुछ है उसके पास। मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी और ठाठ की जिंदगी लेकिन, विश्वजीत को सबकुछ ऐसे ही नहीं मिला है। जब विश्वजीत के पास कुछ भी नहीं था तब भी उसने हिम्मत नहीं हारी थी। तमाम परेशानियों के बावजूद इटा रहा। बिना रुके, बिना थके। मुश्किलों से लड़ते हुए चलता ही रहा। उस समय तक, जब तक कि आईआईटी पहुंचने का उसका सपना साकार नहीं हो गया। जिंदगी में बहुत बार उसे ऐसा लगा कि अब वह टूट जाएगा। उसकी पढ़ाई छूट जाएगी। उस वक्त तो सबसे ज्यादा लगा था, जब पिताजी का टेलीफोन बूथ बंद हो गया था। ( Success stories in Hindi )

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दरअसल बिहार के नालंदा जिले के रहने वाले छोटे प्रसाद धनाभाव के कारण अपनी इच्छा के अनुरूप पढ़ाई नहीं कर पाए थे। प्राथमिक विद्यालय में ही पढ़ाई छूट गई थी। छोटे प्रसाद के पिता रामवरण यादव के पास बहुत थोड़ी सी जमीन थी। खाने-पीने का भी इंतजाम बड़ी मुश्किल से हो पाता था। जब सभी भाई बड़े हुए तब 3 बीया खेती की जमीन तीन हिस्सों में बंट गई। अब एक बीघा खेती में चार बच्चों के साथ गुजारा करना बहुत मुश्किल होने लगा। दाल-रोटी के लिए छोटे प्रसाद ने गांव में ही एक टेलीफोन बूथ खोल लिया लेकिन वक्त हमेशा एक

जैसा नहीं होता है। गांव में मोबाइल फोन पहुंच चुका था। धीरे-धीरे सबके हाथ में मोबाइल फोन आ गया। लोगों ने उनके बूथ पर जाना बंद कर दिया। उस समय उनका बेटा विश्वजीत हाई स्कूल में पहुंच गया था। सरकारी स्कूल के अलावा विश्वजीत के पास और कोई विकल्प नहीं था। छोटे प्रसाद ‘विश्वजीत की पढ़ाई के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। उन्होंने कर्ज लेकर एक गाय और दो भैसें खरीद ली दूध बेचने से जो आमदनी होती थी उससे वे व्याज भरते थे और बचे हुए पैसे से घर का खर्चा चलता था। विश्वजीत खूब मेहनत कर रहा था। जब देखो पढ़ाई ही

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करता हुआ नजर आता था पूरे परिवार को उससे बहुत उम्मीद थी। विश्वजीत की पढ़ाई के साथ गृहस्थी की गाड़ी किसी तरह से खिच रही थी कि तभी छोटे प्रसाद की चचेरे भाइयों से लड़ाई हो गई। उन्हें केस-मुकदमे में फंसा दिया गया। कोर्ट-कचहरी और वकीलों के चक्कर लगाते-लगाते विश्वजीत के पिता परेशान हो गए। पैसों की तंगी हो गई। इसी बीच विश्वजीत के दादाजी बहुत बीमार पड़ गए। उनके इलाज पर होने

वाले खर्च की जिम्मेदारी भी विश्वजीत के पिता के कन्धों पर ही आ गई। अब तो जैसे परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ ही टूट गया। फिर भी विश्वजीत की हिम्मत नहीं टूटी। इन तमाम आर्थिक और मानसिक परेशानियों के बीच विश्वजीत ने अपना संतुलन बनाए रखा। पढ़ाई जारी रखी और दसवीं के बोर्ड में बहुत अच्छे नंबरों से पास हुआ। पैसे थे नहीं। गांव से बाहर जाकर पढ़ने का कोई रास्ता दिख नहीं रहा था। गांव से ही बारहवीं की पढ़ाई की। परंतु अब लेकिन उसके पास इतने भी पैसे नहीं थे कि किताबें खरीद सके और बारहवीं की बोर्ड परीक्षा के लिए फॉर्म भर

सके। लिहाजा वह एग्जाम में नहीं बैठ सका और उसका एक साल खराब हो गया। बावजूद इसके उसने पढ़ाई जारी रखी। अपने से जो भी समझ में आता, पढ़ता रहता था। अगले साल उसके बड़े भाई ने फॉर्म के लिए पैसे इकट्ठा कर विश्वजीत को बाहरवीं की परीक्षा दिलवा दी। इस दौरान विश्वजीत को सुपर 30 के बारे में भी पता चल गया था। वह अपने बड़े भाई के साथ मुझसे मिलने पटना आया और मुझे अपनी पूरी

कहानी सुनाई। फिर क्या वह सुपर 30 का हिस्सा बन गया। खूब मेहनत करने लगा। कहते हैं न कि मेहनत का फल मीठा होता है। रिजल्ट के दिन विश्वजीत के खुशियों का ठिकाना नहीं था। परिवार के सभी सदस्य फूले नहीं समा रहें थे। विश्वजीत का सपना पूरा हो गया था। उसका एडमिशन आईआईटी मंडी में हो गया। इस समय वह बहुत ही अच्छी नौकरी कर रहा है।

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घर खर्च के लिए पिता करते थे रंग-रोगन का काम, बेटा एनआईटी से बना इंजीनियर inspirational story of success of anand kumar supper30 संघर्ष से सफलता की कहानी Successful Story Hindi —Success stories in Hindi

सुनील कुमार गांव देहात में लगने वाले मेले में पेंटर का काम करते थे। कड़ाके की ठंठ हो या फिर चिलचिलाती धूप मेले की खूबसूरत बनाने के लिए दीवारों में रंग भरना ही उनका काम था। बिहार के नालंदा जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाले सुनील कुमार ने पढ़ाई करके एक अच्छी नौकरी करने का सपना देखा था। गांव में ही पढ़ाई करते हुए खूब मेहनत की। संसाधनों के अभाव के बावजूद घंटों पढ़ते रहते थे लेकिन, कुछ

दिनों में गरीबी की जंजीर ने उनके पैरों को जकड़ लिया। फिर इसके बाद उनका सपना एक सपना ही बन कर रह गया। सुनील कुमार को तस्वीर बनाने का बड़ा शौक था। पेंसिल से स्केच बनाते और फिर उनमें रंग भर देते थे। सुनील कुमार को लगा अब वह एक चित्रकार बन सकते हैं लेकिन, आर्थिक तंगी ने उनके सामने एक बार फिर से दीवार खड़ी कर दी। मजबूरन पेट की आग बुझाने के लिए घर-घर जाकर

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दीवार पेंट करने का काम शुरू कर दिया। गांव और उसके आस-पास सिर्फ दीपावली या शादी-विवाह के समय ही कुछ काम मिलता था। शादी के बाद जब दो बच्चे हुए तो गुजारा करना मुश्किल हो गया। उन्हें काम की तलाश में गांव छोड़ना पड़ा। भटकते हुए एक मेले में पहुंच गए और उन्होंने वहाँ अपनी कलाकारी दिखाई। फिर क्या, अब पूरे देश में मेला जहां भी जाता, सुनील कुमार साथ जाते। वे रंग-रोगन से मेले को सजाने का काम करने लगे। यही उनके जीविकोपार्जन का जरिया बन गया।

सुनील कुमार का बेटा सत्यम शुरू से ही बढ़ा होनहार था। गांव में ही पढ़ाई करता था। खूब मेहनती भी था। जैसे ही वह थोड़ा बड़ा हुआ, उसे अपने पिता के सपने के बारे में पता चला। उसी दिन से उसने ठान लिया कि वह अपने पिता के अधूरे सपनों में हर हाल में रंग भरेगा। कभी किसी से किताबें मांग कर काम चला लेता तो कभी ट्यूशन नोट्स देर रात तक पढ़ने के बाद दोनों बच्चे मां से खूब बातें करते थे। मां भी उन्हें

खूब उत्साहित करती थीं। हर रोज पिताजी कब आएंगे, इस बात पर चर्चा होती थी। उनका इंतजार होता था। जब दसवीं में सत्यम का रिजल्ट आया तब गांव वालों को यकीन ही नहीं हो पा रहा था। रिजल्ट के कुछ ही आया तब गांव वालों को यकीन ही नहीं हो पा रहा था। रिजल्ट के कुछ ही दिनों पहले सत्यम को सुपर 30 के बारे में पता चल चुका था। सुपर 30 के एंट्रेंस टेस्ट के बाद जब वह मुझसे मिलने आया तब मैंने

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उससे कहा कि तुम्हारा मैथेमैटिक्स बड़ा कमजोर है। हाजिरजवाब सत्यम बोला कि सर आप तो मैथेमैटिक्स ही पढ़ाते हैं न, आपके साथ रहूंगा तब मजबूत हो जाऊंगा। मैं मेहनत में कोई कमी नहीं करूंगा। वह बोलता जा रहा था लेकिन, उसके चेहरे पर आत्मविश्वास झलक रहा था। मैंने सत्यम को अपना शिष्य बना लिया। उसने सुपर 30 में आते ही काफी गंभीरता के साथ अभ्यास शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसका

मैथेमेटिक्स बहुत अच्छा हो गया। एक दिन जब मैंने उसे शाबाशी दी तब उसने कहा कि सर आपने ही मुझे सिखाया है कि मेहनत से कुछ भी संभव है। अब मुझे लगने लगा कि सच में मेहनत के बलबूते कुछ भी किया जा सकता है। आखिरकार वह दिन भी अब गया जब आईआईटी प्रवेश परीक्षा की सूची में सत्यम का नाम था। परिवार के सभी सदस्य बहुत खुश थे। अच्छी ब्रांच की चाहत में सत्यम ने एनआईटी से अपनी पढ़ाई पूरी की और अभी एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी कर रहा है।

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इंस्पायरिंग लेजेंड विश्वनाथन आनंद की बायोपिक पर फिर काम शुरू… ‘जब सब अच्छा चल रहा हो, तब भी हमें प्रयोग करते रहने चाहिए’

बदलाव के लिए हमेशा तैयार रहें ■ खुद की आलोचना करते रहना सबसे अहम है।

• हर चैलेंज को सीखने के लिहाज से देखना चाहिए। अपने आपको बदलते रहें।

■ आपका हर परफॉर्मेंस, सफलता और असफलता नाम के दो पिलर्स के बीच झूलता है। • आपके अंदर मौजूद जुनून ही फर्क पैदा करने की क्षमता रखता है।

‘सफलता पाना आसान है। मुश्किल तो उसके बाद का सफर है। सन 2000 में जब मैं वर्ल्ड चैम्पियन बना, तब मुझे अपना रास्ता मालूम था, मैं कठिनाइयों को पार करते हुए अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रहा था। इस जीत के बाद एक वैक्यूम पैदा हुआ। अब क्या बड़ा? मैंने अपना रूटीन बनाए रखा। तैयारी में कोई कमी नहीं रखी। लेकिन 2001 में एक बड़ा टूर्नामेंट हार गया। दो मैच हारने के बाद भी मैं चाह कर भी अपनी हार रोक नहीं पाया। लग रहा था कि मैं अपने न्यूनतम पर हूं। चौथी हार हुई… और मेरे जीवन का सबसे बुरा प्रदर्शन मेरे सामने था।

आखिर क्या गलत हो रहा था? तमाम मेहनत के बाद वो ‘स्पार्क’ गायब था। मैं हार से इतना डर रहा था कि रिस्क लेना छोड़ चुका था। जीत का फॉर्मूला बदलना मुश्किल होता है, लेकिन प्रयोग तब भी बंद नहीं करना चाहिए जब हम सफल हो रहे हों।

हार, आपको प्रयोग करने की हिम्मत देती है। सफलता इस राह पर चलने की प्रेरणा दे ही नहीं सकती। इसके बाद मैंने तय किया कि कुछ अलग करूंगा। नए तरीकों पर काम शुरू किया। हद तब हुई जब दुबई ग्रां प्री के दूसरे ही राउंड में बाहर हो गया। यह मेरे लिए झटका था। इस टूर्नामेंट में एक अनोखा नियम था। अगर आप हार भी जाते हैं तो फाइनल के लिए कोशिश कर सकते हैं। मेरे सामने दो रास्ते थे, सात दिन टॉर्चर सहूं या खूब रिलैक्स होकर मजे से

शतरंज खेलूं… मैंने दूसरा रास्ता चुना। मैंने खेल शुरू करने का अपना तरीका बदला और रिजल्ट की चिंता करना छोड़ दिया। दुबई के बाद प्राग गया। मुझे जीतने वालों में गिना भी नहीं जा रहा था। ये मेरे लिए जागने का वक्त था। मुझे यहां हारने या टूर्नामेंट से बाहर होने का डर नहीं था। मैं तो बस खुद के साथ अच्छा वक्त बिताना चाहता था और इवेंट से सीखना चाहता था। इस टूर्नामेंट को जीतने में मुझे जरा भी दिक्कत नहीं हुई तो प्राग में क्या सही हुआ? मैंने चैलेंज को एंजॉय करना शुरू किया। मैं पसंदीदा खिलाड़ियों में नहीं था इसलिए मुझे मेरे आलोचकों को आकर्षित करना था। खुद को जरा-सा बेहतर बनाना अपने आप में चैलेंज

है। मैंने केवल उन बातों पर काम किया जो शतरंज का भला कर सकती थीं। कोच के साथ काम करना बंद किया। टूर्नामेंट्स में अकेले जाना शुरू किया। तब मुझे वो स्पार्क मिला जो मेरे अंदर खो रहा था। बदलाव के लिए 2002 के इवेंट छोड़े। नए लोगों के साथ काम किया। नए खिलाड़ियों से नई स्टाइल समझी। लेकिन सबसे बड़ा सबक यही था कि जब सब अच्छा चल रहा हो, तो भी प्रयोग करते रहना चाहिए। अपने अच्छे फॉर्म में खुद का आकलन कभी ना छोड़ें। जब आप बदलाव के लिए तैयार नहीं होते हैं तो यह पहली

निशानी है कि कुछ गड़बड़ाने वाला है।’ (2007 में चेन्नई में विश्वनाथन आनंद)

 

Success tip  सुपर-30 के आनंद कुमार के शब्दों में

तन और मन से स्वस्थ व्यक्ति ही हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है

बचपन में में स्वामी विवेकानंद की किताबों को पढ़ता था। उनके आदर्श और विचारों ने मेरे जीवन को काफी प्रभावित किया। पर कई बातें थी जो बचपन में नहीं समझ आती थी, पर आज वो बातें अच्छी तरह समझने लगा हूँ। स्वामी जी का कहना था कि सफल होने के लिए स्वस्थ शरीर जरूरी है। 24 घंटे सिर्फ पढ़ाई और किताबों में खोए रहने से बेहतर है कुछ घंटे खेल के मैदान में भी बिताना आज मुझे अनुभव होता है कि

यह बात जीवन का बहुत बड़ा सत्य है, बिना स्वस्थ शरीर के कोई सफल इंसान नहीं बन सकता है। हम अपने जीवन में अनुकूल और प्रतिकूल किसी भी चीज को छोड़ सकते हैं। पर शरीर को खुद से अलग नहीं किया जा सकता। इंसान का शरीर ही अंत तक उसके साथ रहता है। इसलिए शरीर का स्वस्थ रहना हमारे और हमारे जीवन की सफलता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यहां यह समझना होगा की वास्तव में स्वस्थ शरीर के क्या मायने हैं। कुछ व्यायाम कर और खान-पान को घोड़ा नियंत्रित करने से ही शरीर पूरी तरह स्वस्थ नहीं रहता। स्वस्थ शरीर के लिए मन

का भी स्वस्थ होना जरूरी है। मन और तन दोनों स्वस्थ हो तो आपको हर मंजिल हासिल हो सकती है, सफलता की राह बेहद आसान हो जाती है। मन को स्वस्थ और तनाव मुक्त रखने के लिए हमें वह काम करना चाहिए, जिससे खुशी मिले। जीवन का एक ऐसा लक्ष्य होना चाहिए, जिसके लिए आगे बढ़ने में आपको मानसिक संतुष्टि भी मिले। अपने मन के अनुसार लक्ष्य निर्धारित कर सफलता की राह पर आगे बढ़ना चाहिए। मेरा मानना है कि उस काम को करें जिसमें आपको खुशी का अनुभव हो तो यह आपको स्वस्थ रखने में मदद करता है। दूसरों की

इच्छा और दबाव में किए गए काम से मानसिक तनाव बढ़ेगा और स्वास्थ्य खराब होता चला जाएगा। मैं अपना अनुभव बताता हूं, लोगों के बीच बोलने, उन्हें मोटीवेट करने के लिए लेक्चर देने और प्रेरित करने में कई लोगों को घबराहट महसूस होती है। पर मुझे इसमें काफी आनंद आता है। मैं जब भी तनाव में होता हूं तो बच्चों के बीच चला जाता हूं। उन्हें पढ़ाता हूं। बच्चों के बीच रह कर मुझे काफी खुशी का अनुभव होता है और फिर मैं पूरी तरह तनाव मुक्त हो जाता हूं। एक और बात का ख्याल रखना चाहिए कि कोई भी काम हम अपनी क्षमता के मुताबिक ही

करें। लक्ष्य तय करने से पहले खुद का संतुलित होकर आकलन करें कि आपके अंदर कितना कर पाने की क्षमता है, इसके लिए अनुभवी लोगों और गुरुजनों का सहारा ले सकते हैं। क्षमता के अनुसार काम नहीं करने से कई बार नुकसान भी हो जाता है। हां लक्ष्य. हमेशा बड़ा रहे, सोच हमेशा बड़ी रखें। छोटे लक्ष्य से आपकी क्षमता का सही प्रदर्शन नहीं हो सकता और आप उतना सफल नहीं हो सकते जितनी हो पाने की आपके अंदर क्षमता है। खुद को स्वस्थ रखें, अपनी इच्छा से पूरी क्षमता का उपयोग कर आगे बढ़ें तो सफलता अवश्य मिलेगी। इससे आपको खुद को स्वस्थ रखने के लिए प्रेरणा भी मिलती रहेगी। आप खुद के स्वास्थ्य के प्रति सचेत भी रहेंगे।

Best Success tips hindi  सुपर-30 के आनंद कुमार के शब्दों में

एकाग्रता बनाए रखने के लिए एक बड़ा सपना और हमारे कुछ रोल मॉडल होने जरूरी हैं

कई बार किसी से प्रेरित होकर हम नए तेवर के साथ पूरे जोश में कुछ नया करने की योजना बनाते हैं। कुछ किताबें और नोट्स इकटर करते हैं। कभी-कभी किसी इंस्टीटयूट में अपना एडमिशन भी करवा लेते हैं। एक नया रूटीन बनाते हैं। और सोचते हैं कि चाहे इस बार कुछ भी हो जाए बिना मंजिल तक हम स् नहीं। फिर एक संकल्प के साथ एक उम्मीद के साथ हम पढ़ाई शुरू कर देते हैं, लेकिन यह क्या धीरे-धीरे उत्सह

ठंडा पड़ने लगता है और फिर कुछ दिनों के बाद हम प्रयास करना भी छोड़ देते हैं। ऐसा अक्सर होता है। बहुत स्वाग के साथ होता है। यह न सिर्फ पढ़ाई के क्षेत्र में बल्कि और अन्य कई क्षेत्रों में भी होता है। चाहे मामला योगाभ्यास का हो या फिर व्यापार का आखिर में हमलोग एकाग्रचित हो ही नहीं पाते हैं और बहुत जल्द ही अपना धैर्य रखी देते हैं। सफलता के लिए यह बहुत जरूरी है कि बिना किसी भटकाव के हम लंबे समय तक एकाग्रचित होकर अपने काम में लगे रहें। आज में आपसे इसी विषय पर अपने कुछ अनुभव शेयर करने जा रहा हूं।

आप जो कुछ भी करना चाहते हैं। बनना चाहते हैं। सबसे पहले यह सोचें कि उस विषय में आपकी रुचि है या आपने बिना सोचे समझे किसी से प्रभावित होकर कोई बड़ा प्लान तो नहीं बना लिया है। कई बार यह देखने में आता है कि माता-पिता अपने बच्चों के साथ गलत करते है। बगैर उनकी पसंद समझे हुए किसी खास फील्ड में जाने के लिए दबाव बनाते हैं। आपको उसी क्षेत्र में सफलता हासिल होगी जिसमें आपकी रुचि हो।

हर इंसान में असीम क्षमता होती है, लेकिन सभी में एक तरह का टैलेंट नहीं होता। अपने भीतर छिपे टैलेंट की परख होना बहुत जरूरी है। लंबे समय तक एकाग्रता बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि आप अपनी क्षमताओं से परिचित हों और उसी फील्ड में आगे बढ़ें।

कभी भी किसी विषय को हम अचानक नहीं समझ सकते हैं। किसी विषय को समझने के लिए उसे शुरू से शुरू करना होता है। बहुत ही बेसिक से। इससे हम विस्तार से, आराम से न सिर्फ विषय को समझने लगते हैं बल्कि उस दरम्यान हुई छोटी-छोटी गलतियों को आसानी से समझने और उन्हें सुधारने का मौका भी मिलता रहता है। फिर धीरे-धीरे सब्जेक्ट को समझने के बाद मन लगने लगता है। जिससे हम एकाग्र होने लगते हैं। पूरी तरह फोकस्ड हो जाते हैं।

एकाग्रता बनाए रखने के लिए एक बड़ा सपना और कुछ हमारे रोल मॉडल होने चाहिए। हर दिन, हर वक्त हमारे मन में यह बात चलती रहनी चाहिए कि एक दिन मुझे अपना सपना पूरा करना है। और जरूर करना है।

अगर आप ऐसा करते हैं तब मैं पूरे यकीन के साथ अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि एक न एक दिन आपका सपना जरूर पूरा होगा।

inspiration success सुपर-30 के आनंद कुमार के शब्दों में hindi

नकारात्मक विचार आपके आत्मविश्वास को प्रभावित करते हैं, ऐसे विचारों से बचें

6 हर व्यक्ति का वर्तमान उसके भविष्य को प्रभावित करता है। वर्तमान को बेहतर बनाने के लिए अपने अंदर सकारात्मक भाव तथा ऊर्जा को बनाए रखें। जीवन में आगे बढ़ने के लिए यह जरूरी है कि आपके आस पास सकारात्मक विचार वाले लोग हो। उनकी बातों को सुनें और उनकी सकारात्मकता को अपनाएं। बेवजह डराने और भयभीत करने वाली बातों तथा लोगों से बचें। सुबह उठने के बाद अगर आपका मूड खराब हो

जाए तो पूरा दिन बर्बाद हो जाता है। पर यदि आप पॉजिटिव रहते हैं तो पूरे दिन और आने वाले समय में भी पॉजिटिव बने रहेंगे। इसके लिए सुबह उठकर सबसे पहले योग करें, व्यायाम करें और कुछ देर ध्यान लगाएं। इसके बाद हो सके तो देश और दुनिया की कुछ पॉजिटिव खबरें पढ़ें। समाचार माध्यम और सोशल मीडिया की नेगेटिव खबरों से सुबह बचने का प्रयास करें। सुबह अगर आपके अंदर पॉजिटिव एनर्जी आ गई तो फिर नेगेटिव घटनाओं और खबरों का भी आप पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा। इस दिशा में नो नेगटिव मंडे की दैनिक भास्कर ने सराहनीय

पहल की है. जिससे आपका पूरा सप्ताह पॉजिटिविटी से भरा रह सकता है। यह जानना बेहद जरूरी है की हमारे जीवन में अच्छा कौन है और बुरा कौन है? इसके लिए स्वामी विवेकानंद ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण और अनुकरणीय बात कही थी। उन्होंने कहा था कि जिससे बात कर आपके अंदर एक ताकत और सकरात्मकता का भाव महसूस होता है वह आपके जीवन के लिए अच्छा है। उसकी बातों को सुनना और अच्छी

तरह समझना चाहिए। नकारात्मक बात करने वालों को पूरी तरह नजरअंदाज करने का प्रयास करें काफी दिन पहले सुपर 30 का एक छात्र घबराया हुए मेरे पास आया। वह एक प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था, जिसमें करीब छह महीने का समय था। मैंने उसकी परेशानी का कारण पूछा तो कहने लगा की मेरा बड़ा भाई बैंकिंग की परीक्षा में फेल हो गया है। मैंने उससे पूछा कि इससे तुम क्यों परेशान हो तो उसने कहा कि भाई से बात करने के बाद ऐसा लग रहा है कि मैं भी कहीं फेल ना हो जाऊं। उसकी बातों को सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि वह एक

काफी प्रतिभाशाली छात्र था। मैंने उसे कहा तुम चिंता छोड़कर अपनी परीक्षा की तैयारी करो। कुछ दिन बाद वह बोला कि सर, मेरा एक दोस्त बहुत बीमार हो गया है, परीक्षा से पहले कहीं मैं भी बीमार ना पड़ जाऊं। मैंने समझाया कि तुम हर बात में खुद की तुलना दूसरे क्यों करते हो। तुम समय से पढ़ते हो, समय से सोते और उठते हो, समय से खाना खाते हो, तुम क्यों बीमार पड़ोगे ? परीक्षा में भी तुम सफल रहोगे। पर कुछ

दिनों के लिए ऐसे लोगों से बात न करो जो तुमसे नेगेटिव चीजों के बारे में बात करते हैं। बाद में वह छात्र काफी अच्छे अंकों के साथ अपनी परीक्षा में सफल हुआ। आज काफी कम उम्र के बच्चे टीवी और मोबाइल पर भूत प्रेत वाले डरवाने तथा नेगेटिव मैसेज देने वाले सीरियल और शो देखते हैं। इससे बच्चों के मन में नकरात्मकता भरती जाती है। आने वाले दिनों में उनका व्यवहार भी पूरी तरह नकारात्मक हो जाता है। बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए उन्हें हर हाल में नेगेटिविटी से निकालना होगा। ऐसे चीजों से दूर करना होगा जो उनके अंदर नकरात्मक विचार और गुण भरते हैं। उनके अंदर सकारात्मक विचार और भावना का विकास कर एक सफल इंसान बनाया जा सकता है।