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Hindi Motivational stories
रियल लाइफ स्टोरी इन हिंदी : पहले खेती बर्बाद हुई, पिता को मजदूर बनना पड़ा, अब इंजीनियर बन परिवार को किया मजबूत , motivational stories
न रहने को घर, न पेट भरने को खाना घर का माहौल ऐसा कि सौतेली मां उसे अपने पास फटकने तक नहीं देती थी। पढ़ाई का कोई जरिया नहीं और वह पढ़ने में इतना तेज भी नहीं था। लेकिन एक ही लगन थी उसकी कि मां की इच्छा पूरी करनी है। उस मां की जो उसे जन्म देने के एक महीने बाद ही स्वर्ग सिधार गई थीं। जाने से पहले अपने दुधमुंहे बच्चे के लिए एक ही संदेश छोड़ गई थी वह, मेरा बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनेगा, मोटिवेशनल स्टोरी इन हिंदी फॉर स्टूडेंट्स , hindi motivational stories
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के गुलरियापुर गांव में अभिषेक कमल के पिता रहते थे। खुद पढ़े-लिखे नहीं थे और न ही पुश्तैनी संपत्ति इतनी थी कि अपना पेट भर सकें। गांव में ही खेतों में मजदूरी करने लगे। शादी हुई और फिर अभिषेक का जन्म हुआ, लेकिन एक महीने बाद ही पत्नी की मृत्यु हो गई। दादी ने बच्चे के लालन-पालन की जिम्मेदारी उठाई, लेकिन
अभिषेक की बदकिस्मती कि डेढ़ साल बाद दादी भी नहीं रहीं। पिता ने इस उम्मीद में दूसरी शादी कर ली कि बच्चे को पालने-पोसने में मदद मिलेगी। यहां भी अभिषेक की खराब किस्मत ने उसका साथ नहीं छोड़ा। सौतेली मां उसका ध्यान रखना तो दूर, पेट भर खाना भी नहीं देती थीं।
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इसी माहौल में पिता ने गांव के स्कूल में उसका दाखिला करा दिया। सुबह भूखे पेट वह स्कूल के लिए निकल पड़ता। लौटता तो फिर घर के किसी कोने में बैठकर पढ़ने लगता। स्कूल में शिक्षक पढ़ाते नहीं थे और घर में कोई मदद करने वाला था नहीं। इसलिए अभिषेक निराश होने लगा, यह सोचकर कि वह पढ़ाई करने के लायक नहीं है।
फिर किसी ने उसे बताया कि उसकी मां उसे बड़ा आदमी बनाना चाहती थीं और इसके लिए पढ़ाई करना जरूरी है। उस दिन से अभिषेक का पढ़ाई ही नहीं, जीवन के प्रति नजरिया ही पूरी तरह बदल गया और उसने मां की इच्छा पूरी करने को ही अपना लक्ष्य बना लिया। भूखे पेट मेहनत करने के चलते अक्सर बीमार हो जाता,
लेकिन स्कूल जाना नहीं छोड़ता। छठी कक्षा में अंग्रेजी की पढ़ाई शुरू हुई तो मुश्किलें बढ़ गई। लाख कोशिश करने पर भी उसे कुछ समझ नहीं आता था, लेकिन मां की याद आते ही दोगुनी लगन से पढ़ाई में जुट जाता।
समय आगे बढ़ता गया और अभिषेक अब ऊंची कक्षा में पहुंच चुका था। उसकी पढ़ाई के खर्चे भी बढ़ने लगे थे। इधर, कमजोर बारिश के चलते खेती का बुरा हाल था और पिता को मजदूरी भी बड़ी मुश्किल से मिल पाती थी। कोई रास्ता न देख उन्होंने कोल्हू का बैल चलाना शुरू किया। अभिषेक इसमें भी उनका हाथ बंटाता ।
इसी तरह उसने दसवीं की परीक्षा पास कर ली। अब आगे का रास्ता उसे पता नहीं था। किसी ने इंजीनियरिंग के बारे में बताया तो वह एक दिन अचानक ही मेरे पास आ गया। मुझे पूरी कहानी सुनाई। उसे मुझे लगा कि वह कुछ कर सकता है, लेकिन उस समय वह ग्यारहवीं कक्षा में ही था। मैंने उससे कहा कि वह बारहवीं करने के बाद आ जाए।
उसने ऐसा ही किया। शुरुआत में मुझे बड़ी चिंता हुई क्योंकि अभिषेक क्लास में किसी सवाल का जवाब नहीं दे पाता था। पूछने पर उसने मुझे आश्वस्त किया कि मां के आशीर्वाद की मदद से वह हर काम कर सकता है और आईआईटी प्रवेश परीक्षा भी जरूर क्लियर करेगा। वह खूब मेहनत करने लगा। थोड़े दिनों में इसका नतीजा भी दिखने लगा। रिजल्ट के दिन भी वह मेरे पास ही था। अब अभिषेक आईआईटी, दिल्ली से पढ़ाई पूरी करके मुंबई में एक बहुत बड़ी कंपनी में काम कर रहा है।
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2nd story रियल लाइफ स्टोरी इन हिंदी, आर्थिक तंगी से दो भाइयों की पढ़ाई तक छूटी, वह एनआईटी से बना इंजीनियर
सत्यदेव प्रसाद काफी परेशान थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि अपने बेटे श्रवण कुमार को आगे कैसे पढ़ाएं। पैसे तो थे नहीं बल्कि आर्थिक मुश्किलों के चलते श्रवण से दो बड़े बच्चों की पढ़ाई भी बीच में ही छूट गई थी। उन्हें डर लग रहा था कि कहीं श्रवण की पढ़ाई भी अधूरी न रह जाए।
बचपन से ही गरीबी से संघर्ष करते हुए श्रवण अच्छे अंकों से दसवीं पास कर गया था। बिहार के रोहतास जिले के रहने वाले सत्यदेव प्रसाद धनवाद में एक कंपड़े की दुकान में काम करते थे। उन्हें चिंतित देखकर दुकानदार ने कारण पूछा और फिर उसने सुपर 30 के बारे में बताया। दुकानदार ने कुछ दिनों की छुट्टी भी दे दी। अब सत्यदेव प्रसाद अपने बेटे के साथ मेरे सामने खड़े थे। उन्होंने जब अपनी कहानी बताई तो मेरी भी आखें भर आईं।
पांच बच्चों के पिता सत्यदेव प्रसाद आर्थिक मुश्किलों का सामना बचपन से ही करते आ रहे थे। पैसे के अभाव में पढ़ाई छूट गई थी। बहुत ही कम उम्र से काम पर लग गए थे। शादी के बाद जब परिवार चलाना मुश्किल होने लगा तब ससुराल वालों ने कुछ आर्थिक मदद की। उसी पैसे से सत्यदेव प्रसाद ने कुछ साड़ियां खरीदकर बेचना शुरू कर दिया। रोज सुबह-सुबह गठ्ठर उठाते और गांव-गांव घूमकर दिनभर साड़ी बचते। देर रात को घर लौटने के बाद जब श्रवण को लालटेन की रोशनी में पढ़ते देखते तो उनकी सारी थकान दूर हो जाती थी। लगातार कठोर परिश्रम
करके उन्होंने थोड़े से पैसे जमा कर लिए। फिर गांव में ही एक छोटी सी दुकान खोल ली लेकिन, गांव में सीमित ग्राहक होने की वजह से दुकान नहीं चली। घर की आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई। इन तमाम मुश्किलों में भी श्रवण पढ़ता रहा। उसके जिन दो बड़े भाइयों की पढ़ाई छूट गई थी अब वो दोनों भाई कुछ कमाकर श्रवण को देते थे, जिससे वह किताबें खरीदकर अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ा रहा था। कुछ दिनों के बाद रोजी-रोटी की जुगाड़ में सत्यदेव प्रसाद धनवाद चले आए। उन्हें कपड़े की जानकारी थी, इसीलिए एक साड़ी की दुकान पर काम मिल गया था।
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श्रवण की पूरी कहानी सुनकर मैंने उसे सुपर 30 में अपने साथ रखने का निर्णय ले लिया। हिंदी माध्यम से पढाई करने वाले श्रवण को कुछ दिन तो इंग्लिश के टर्म समझने में ही समय लग गया लेकिन, श्रवण बहुत मेहनती था और अपने नाम के अनुरूप माता-पिता का भक्त भी। वह हमेशा यही कहता कि उसके पिता दिन रात मेहनत करते हैं, उसे उनके लिए कुछ करके दिखाना है। वह दिन-रात पढ़ता रहता था। सुपर
30 में होने वाले टेस्ट में भी उसका परफॉर्मेंस बहुत अच्छा होने लगा। आईआईटी प्रवेश परीक्षा में भी उसने बहुत अच्छा परफॉर्मेंस दिया। उसका सलेक्शन आईआईटी के लिए हो गया था लेकिन, वह अच्छी बांच से इंजीनियरिंग करना चाहता था, इसलिए उसने एनआईटी में एडमिशन करवा लिया। अब तो उसकी अच्छी नौकरी लग चुकी है लेकिन, श्रवण अभी आगे और पढ़ाई करना. चाहता है।
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2. एक समय घर का गुजारा भी था मुश्किल, पर डटा रहा, आज अमेरिका में है इंजीनियर, शार्ट मोटिवेशनल स्टोरी इन हिंदी
बिहार के समस्तीपुर का रहने वाला है चिरंजीव चार भाइयों का परिवार था और पिता हरे राम गुप्ता के पास कमाई का कोई मजबूत जरिया नहीं था। खेती के बूते पर एक गाय पाल ली थी। यही परिवार के भरणपोषण का सहारा था। मां शीला देवी दसवीं तक पढ़ी थीं और पढ़ाई की अहमियत उन्हें बखूबी मालूम थी। उनकी आंखों में चिरंजीव के लिए एक ही सपना था कि वह पढ़-लिख कर इंजीनियर बन जाए। मगर एक
गाय भरोसे जिंदगी का गुजारा करने वाले परिवार में यह कैसे संभव था? चिरंजीव की योग्यता ने इसे संभव बनाया। योग्यता थी गणित के जटिल सवालों को आसानी से हल करने की सरकारी स्कूल से मैट्रिक पास करने के बाद जब वह पहली बार मेरे पास आया तो इसी काबिलियत ने उसे सुपर 30 का हिस्सा बना दिया।
साधनहीन सरकारी स्कूल में उसे गणित के मुश्किल सवालों को खुद हल करने का अभ्यास करना पड़ता था क्योंकि अक्सर टीचर होते ही नहीं थे। यह अभ्यास उसे गणित की गहराइयों में ले गया। वह कम्प्यूटर साइंस पढ़ना चाहता था। मैंने उसे बताया कि इसके लिए रैंक अच्छी लानी होगी।
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वह भिड़ गया। पलटकर नहीं देखा। लक्ष्य तय हो चुका था। सभी सहपाठियों का कहना था कि चिरंजीव बहुत आगे जाने की क्षमता रखता है। इस प्रोत्साहन ने चिरंजीव के सपनों को और बल दिया। 2010 आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में उसकी रैंक वैसी ही आई, जैसी उसके सपने के पूरे होने के लिए जरूरी थी। आईआईटी बीएचयू में उसका दाखिला हुआ। कम्प्यूटर साइंस की पढ़ाई उसने मन लगाकर की। कैम्पस इंटरव्यू में उसका चयन मोबाइल बनाने वाली एक प्रतिष्ठित कंपनी ने किया। वह ऐसे मोबाइल डिजाइन करने की तरफ कदम बढ़ा चुका था, जो लोगों
को देखते ही लुभा लें। सैमसंग में काम करने के साथ-साथ वह कुछ और भी बड़ा करने के लिए हमेशा सोचता रहता था। एक दिन चिरंजीव ने फोन किया और कहा कि सर अब डिजिटल दुनिया का जमाना है। सुपर 30 ने मेरे लिए इतना कुछ किया है, मैं भी कुछ करना चाहता हूं। अब मैं सुपर 30 के दोस्तों के साथ मिलकर एक ऐप बनाना चाहता हूं। चिरंजीव नौकरी करते हुए भी लगातार मेहनत करता रहा और एक “दिन
उसकी खुशियों का ठिकाना नहीं था जब अमेरिका की बहुत ही प्रतिष्ठित कंपनी से उसे ऑफर आया। आज चिरंजीव अमेरिका में काम कर रहा है। गाय के भरोसे पलने वाले परिवार में आज खुशियों का डेरा है। चिरंजीव की कहानी का सार यही है कि मीठे फल का इंतजार ज्यादा लंवा नहीं करना होगा।
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4. अभावों में झुका नहीं, मेहनत ऐसी की, पहले आईआईटी फिर आईआईएम में पाया एडमिशन , real life inspirational stories in hindi
6 सोनू कुमार शर्मा की कहानी बताती है कि समय बदलते देर नहीं लगती। बुरे दौर का हिम्मत और मेहनत से मुकाबला करें तो मुसीबतें खुद ही दूर हो जाती हैं। सोनू के पिता गंगा प्रसाद आईटीआई में छोटे पद पर काम करते थे। कमाई इतनी ही थी कि किसी तरह अपना और परिवार का पेट भर सकें, लेकिन आईटीआई में छात्रों को पढ़ते देख वे अपने सोनू के लिए सपने देखा करते थे। लेकिन उनकी दुनिया आईटीआई तक ही सीमित थी।
पिता अपनी नौकरी के दम पर बड़ी मुश्किल से बच्चों के लिए संसाधन जुटा पाते थे। लेकिन सोनू को आईटीआई में पढ़ाने की उनकी हसरत कभी कमजोर नहीं पड़ी। सोनू भी इन मुश्किलों से जूझते हुए किसी तरह पढ़ाई करता रहा। आठवीं नौवीं कक्षा में था तब भी वह रात को देर तक जागकर पढ़ाई करता रहता। उसकी यह धुन देखकर पिता मन ही मन खुश होते, लेकिन
दिल में कचोट होती थी कि वे बेटे की पढ़ाई की सारी जरूरतें पूरी
नहीं कर पा रहे थे।
वह जब दसवीं कक्षा में आया तो उसने पहली बार आईआईटी का नाम सुना। उसके बाद से उसने आईआईटी में ही पढ़ाई करने की ठान ली। किसी तरह दसवीं पास करने के बाद उसने पिता को आईआईटी के बारे में बताया तो उन्होंने पहली बार में ही मना कर दिया। उनके मन में तो आईटीआई बैठा था। फिर, आईआईटी की तैयारी और पढ़ाई में होने वाले खर्च की भी उन्हें चिंता थी, लेकिन बेटे की जिद के आगे उन्हें घुटने टेकने पड़े। खर्च की व्यवस्था के लिए उन्होंने घर के कई सामान बेच दिए।
इसी बीच सोनू को सुपर 30 के बारे में पता चला और एक दिन वह मेरे सामने था। बेहद शर्मीला और संकोची, लेकिन प्रतिभा से भरा हुआ। उसने तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिता का विका हुआ घर और परिवार की गरीबी उसे हर पल याद रहते।
साल 2010 में आईआईटी प्रवेश परीक्षा का रिजल्ट आया तो सोनू की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसे आईआईटी, खड़गपुर में प्रवेश मिल गया था। उसने जी-तोड़ मेहनत कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। इसी दौरान आईआईएम के बारे में पता चला तो अब वह उसकी तैयारी में भिड़ गया। इधर कैंपस प्लेसमेंट में उसकी नौकरी रिलायंस कंपनी में लग गई। दूसरी ओर, कैट परीक्षा में कामयाबी हासिल करने के बाद उसे आईआईएम में भी प्रवेश मिल गया। आज सोनू एक अच्छी नौकरी कर रहा है।
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सुपर-30 के आनंद कुमार के शब्दों में गरीबी ऐसी कि पढ़ाई तक छोड़नी पड़ी, लेकिन डटा रहा, आईआईटी से बना इंजीनियर, मोटिवेशनल स्टोरी इन हिंदी
● अंकित का परिवार बिहार के एक छोटे से शहर जमुई में रहता था। पिता प्रदीप लाट ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, न ही रोजगार का कोई स्थायी जरिया था। कभी कभार थोड़े कपड़े बेच लिया। करते थे। इससे किसी तरह परिवार का गुजारा चलता था कमाई इतनी नहीं थी कि बच्चों को पढ़ाने की सोच भी सकें। लेकिन मां सुधा अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनते देखना चाहती थीं। अंकित तीन भाइयों में
सबसे बड़ा था। मां उसे घर के बगल में ही एक सरकारी स्कूल में भेजने लगीं। जब वह छठी कक्षा में था तब उसे किसी ने वैज्ञानिकों की जीवनी वाली एक किताब पढ़ने को दी। अंकित उनके आविष्कारों से इतना प्रभावित हुआ कि उसने बड़ा होकर वैज्ञानिक बनने की ही ठान ली। हालांकि, वैज्ञानिक बनते कैसे हैं, यह उसे पता नहीं था। इधर बच्चे बड़े हो रहे थे और पिता के के लिए दो जून की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो रहा था। घर की हालत इतनी खराब थी कि कई बार उसके पास किताब-कॉपी भी नहीं होती थी।
वर्ष 2005 में उसने दसवीं की परीक्षा पास कर लो, लेकिन आगे की पढ़ाई का खर्च उठाना परिवार के लिए संभव नहीं था। अंकित की पढ़ाई छूट गई और यह पिता के काम में हाथ बंटाने लगा। लेकिन वैज्ञानिक बनने का सपना उसने अब भी छोड़ा नहीं था। जहां जो मिल जाए, वही पढ़ने लगता था। उसे किसी ने बताया कि वैज्ञानिक बनने के लिए आईआईटो में पदई करनी चाहिए, लेकिन उसे तो आईआईटी के बारे कोई
जानकारी नहीं थी। इसी बीच उसने अखबार में सुपर-30 के बारे में पढ़ा और मेरे पास गया। पहली मुलाकात में ही उसने मुझे प्रभावित किया। उसके हरेक शब्द से जैसे आत्मविश्वास झलक रहा था। उसे बस एक मौके की दरकार थी। वह हमारे साथ रहने लगा। साथ में एक अच्छे स्कूल का सपोर्ट भी मिल गया। दसवों से बारहवीं तक स्कूल भी जाकर पढ़ने का निःशुल्क ऑफर मिला।
वह जीतोड़ मेहनत करता। हर कॉन्सेप्ट की गहराई में उतरकर उसे समझझने की कोशिश करता। एक ही सवाल को अलग-अलग तरीकों से हल करने के बारे में सोचता रहता। कहीं कोई दिक्कत होती तो सीधे मेरे पास आ जाता, लेकिन प्रश्न का जवाब ढूंढे बगैर दम नहीं लेता। बारहवीं के साथ-साथ ही वह आईआईटी की तैयारी भी कर रहा था। आखिर वह दिन भी आ गया जब उसे आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में
शामिल होना था। दूसरे छात्र जहां तनाव में थे, अंकित निश्चिंत था। परीक्षा देकर लौटा तो दूर से ही उसके चेहरे की मुस्कान बता रही थी कि उसे अपनी कामयाबी का पूरा भरोसा है। आते ही उसने मुझे कहा कि अब मेरा वैज्ञानिक बनने का सपना पूरा होने वाला है।
रिजल्ट आया तो लिस्ट में उसका भी नाम था। अंकित को आईआईटी, पटना में एडमिशन मिला। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही वह इंटर्नशिप के लिए दो बार अमेरिका के हास्टन यूनिवर्सिटी गया। डिप्रो पूरी करने के. बाद वह रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक के पद पर काम कर रहा है। उसके + मार्गदर्शन में एक भाई पटना मेडिकल कॉलेज और दूसरा आईआईटी कानपुर में पढ़ाई पूरी करके नौकरी कर रहा है।
motivational story के साथ जानिए इसरो से पढ़ाई के बारे में, डिग्री के साथ मिल सकती है साइंटिस्ट की नौकरी भी
चन्द्रयान के परीक्षण के बाद पूरी दुनिया में ‘इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन’ (इसरो) एक बार फिर से चर्चा का विषय बन गया। इसके पहले भी इसरो ने कई ऐसे कीर्तिमान स्थापित किए हैं जिससे हर भारतीय को गर्व हुआ है। डॉ अब्दुल कलाम ने भी अपने कठोर परिश्रम और लगन से इसरो को एक नई ऊंचाई दी। हमारे देश में बहुत पहले से ही अंतरिक्ष विज्ञान में शोध होते रहें हैं। आर्यभट्ट के कई महत्वपूर्ण खोजों को आज भी पूरी दुनिया के साइंटिस्ट मील का पत्थर मानते हैं। आर्यभट्ट के बाद भी हमारे देश में कई बड़े-बड़े रिसर्च होते रहे हैं। नोबल प्राइज
विजेता सीवी रमन, एसके मित्रा तथा मेघनाथ साहा ने भी स्पेस साइंस के क्षेत्र में कई बड़े काम किए हैं। लेकिन, 1962 में सुविख्यात वैज्ञानिक विक्रम साराभाई ने देश के विकास के लिए एक स्पेस रिसर्च सेंटर की विशेष जरूरत समझी। तब भारत सरकार की मदद से ‘डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी के अंतर्गत इसरो की स्थापना की गई। 19 अप्रैल 1975 को पहली बार इसरो ने अंतरिक्ष में सोवियत संघ की मदद से
सैटेलाइट भेजा जिसका नाम आर्यभट्ट था। उसके बाद लगातार इसरो काम करता रहा। इसरो ने गगन तथा आईआरएनएसएस नामक दो सैटेलाइट नेविगेशन विकसित किए। जिसका उपयोग भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय में खूब होता है। हमारे सैनिकों को कई मामले में इसका लाभ मिलता है। जिसकी सहायता से सैनिक अपना काम बेहतर तरीके से कर पाते हैं। मौसम से सम्बंधित भविष्यवाणियों में भी इसरो की अहम भूमिका होती है। कहां तूफान आने वाला है या जोरों की बारिश होने वाली है, इसरो पहले ही सूचित कर देता है। इसरो ने 2008 में
चंद्रयान- 1 तथा पिछले साल चंद्रयान- 2 का परीक्षण किया। अब इसरो मनुष्य को
अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी कर रहा है।
हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। जब नई पीढ़ी के प्रतिभाशाली लोगों को काम करने का मौका मिलेगा, तब इसरो में और नए व अच्छे रिसर्च होंगें। हालांकि हमारे देश में बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि कोई भी विद्यार्थी मैथेमेटिक्स से 12वीं कक्षा पास करके इसरो के ट्रेनिंग प्रोग्राम को जॉइन कर सकता है और उसके बाद वहां साइंटिस्ट बन सकता है।
इसरो के ट्रेनिंग प्रोग्राम में प्रति वर्ष 140 सीटें होती हैं। चार साल तक पढ़ने के बाद बीटेक तथा कुछ विद्यार्थियों को 5 साल तक पढ़ने के बाद डुअल डिग्री प्रदान की जाती है। सुपर के कुछ विद्यार्थियों को इसरो तक पहुंचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। विद्यार्थी बताते हैं कि वहां पढ़ाने वाले प्रोफेसर बड़े साइंटिस्ट होते हैं। पढ़ाने तथा समझाने का तरीका काफी अलग और साइंटिफिक होता है। इसरो में पढ़ाई करने के लिए सबसे
पहले जेईई-मेन परीक्षा में सफल होना पड़ता है। अगर आपके मार्क्स जेईई-मेन में अच्छे आते हैं तब आप जेईई एडवांस की परीक्षा में शामिल हो सकते हैं। जेईई एडवांस के रिजल्ट के बाद आप इसरो के लिए आवेदन दे सकते हैं। इसके लिए आपको, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस, साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईआईएसटी) को वेबसाइट पर जाना होगा। उसके बाद जेईई एडवांस के मार्क्स के आधार पर आवेदकों की एक
मेरिट लिस्ट तैयार की जाती है। फिर चयनित विद्यार्थियों को काउंसलिंग के लिए देश के बड़े शहरों में बुलाया जाता है। पढ़ाई त्रिवेंद्रम सेंटर पर होती है। अगर विद्यार्थी का परफॉर्मेंस अच्छा रहा तब उससे कोई फीस नहीं ली जाती है। लगभग सभी विद्यार्थी ऐसे ही होते हैं जिन्हें किसी तरह की कोई फीस नहीं देनी पड़ती है। हर सेमेस्टर में विद्यार्थियों को किताब कॉपी खरीदने के लिए 3000 रुपए भी दिए जाते हैं। पढ़ाई पूरी होते ही इसरो में बतौर साइंटिस्ट नौकरी भी लग जाती है।
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