Inspirational Stories of Success& Motivational stories — For Real life story

Inspirational Stories& Motivational stories — For Real life story

गरीबी के चलते पिता ढंग से पढ़ भी न सके, अब बेटा बना डॉक्टर

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रामप्रवेश सिंह पढ़ाई में खूब मन लगा रहे थे। उन्हें अपने पिता का सपना जो पूरा करना था। पिता भूमिहीन किसान थे। गांवमें अगर कुछ काम मिलता तब घर का चूल्हा जलता था वरना भूखे पेट सोना जैसे उनके परिवार की आदत बन गई थी।

एक दिन पिता बहुत बीमार पड़ गए। ईलाज के लिए पैसे नहीं थे। परिवार को बहुत तकलीफ उठानी पड़ी। उसी दरम्यान

पिता ने बोला कि बेटा रामप्रवेश, चाहे जो हो जाए तुम्हें मेरा एक सपना पूरा करना है। बेटा तुम्हें डॉक्टर बनना है। डॉक्टर बनकर गरीबों का मुफ्त में इलाज करना और फिर क्या

 

सुविधाएं नहीं होने के बावजूद उसी दिन से रामप्रवेश सिंह ने ठान लिया कि उन्हें अब हर हाल में डॉक्टर ही बनना है।

उन्होंने खूब पढ़ाई की लेकिन, निर्धनता इस कदर हावी थी कि पढ़ाई के लिए गांव से बाहर जाना संभव ही नहीं हो सका। राम प्रवेश को अपने पिता की बातें याद आती थीं।

कि बेटा तुम्हें डॉक्टर बनना है लेकिन, मन मसोस कर रहना पड़ता था। फिर उन्होंने फैसला लिया कि हर हाल में डॉक्टर

तो बनाना ही है। होम्योपैथी इलाज से संबंधित कुछ किताबें ले ली और खूब अध्ययन किया होम्योपैथी का ज्ञान उन्हें अच्छा हो गया।

 

फिर क्या उन्होंने गरीबों का इलाज शुरू कर दिया। दूर-दूर के गांव से लोग आने लगे। अगर कोई पैसा दे देता तो

ठीक वरना निःशुल्क ही इलाज कर दिया करते थे। जो थोड़ी आमदनी होती थी उससे मुश्किल से घर का खर्चा चलता था।

कुछ दिनों के बाद उनकी शादी हो गई और तीन बच्चे भी हो गए। बेटा राहुल का झुकाव पढ़ाई के प्रति देखकर उनके मन में ये ख्याल आया कि बेटे को मेडिकल की पढ़ाई करवाएंगे और उसे बड़ा डॉक्टर बनाएंगे। अब

रामप्रवेश ने अपने पिता का सपना बेटे के जरिए ही पूरा करने का सोचा। धनाभाव के चलते राहुल की पढ़ाई सरकारी स्कूल से ही शुरू हुई। जैसे-जैसे वह बड़ा हो रहा था, अपने पिता के सपने के बारे में समझ रहा था।

 

दसवीं बोर्ड का जब रिजल्ट आया तब राहुल के घर में खुशियों का ठिकाना नहीं था। माता-पिता बहुत खुश थे। राहुल की

प्रतिभा को देखकर गांव के कुछ लोगों ने मेडिकल एंट्स टेस्ट की तैयारी करने के ख्याल से उसे आगे की पढ़ाई के लिए कोटा, दिल्ली या कम से कम पटना जाने की सलाह दी। पिता के पास पैसे तो थे नहीं।

बहुत प्रयासों के बावजूद असफलता ही हाथ लगी लेकिन, परिवार ने उम्मीदों का दामन नहीं छोड़ा। एक दिन राहुल ने

किसी अखबार में सुपर 30 के बारे में पढ़ा पिता से कहा कि कोई बात नहीं में अब इंजीनियर ही बनूंगा। राहुल के प्रदर्शन को देखकर में बहुत ही प्रभावित हुआ और उसे सुपर 30 में शामिल कर लिया।

एक दिन राहुल बहुत उदास बैठा था। जब मैंने उसकी उदासी का कारण पूछा तब उसने अपनी पूरी कहानी विस्तार से बताई।

मैंने कहा कोई बात नहीं। तुम सुपर 30 में एक नया इतिहास बनाओगे। आज से तुम अपने स्तर से बायोलॉजी भी पढ़ना शुरू कर दो और आईआईटी प्रवेश परीक्षा की तैयारी तो तुम मेरे साथ कर ही रहे हो।

फिर क्या राहुल ने अपनी पूरी ताकत झोक दी। रात-दिन पढ़ाई, पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई करने लगा। कुछ दिनों के बाद जय रिजल्ट आया तब वह इंजीनियरिंग और मेडिकल दोनों ही परीक्षाओं में सफलता हासिल कर चुका था लेकिन उसे तो अपने दादा और पिता का सपना पूरा करना था।

 

इसलिए उसने डॉक्टर बनने के उद्देश्य से नालंदा मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई शुरू कर दी। अब उसका आखिरी साल है। मुझे पूरा विश्वास है कि वह पढ़ाई पूरी करके गरीबों का इलाज करेगा और अपने दादा और पिता के सपनों में रंग भर देगा।

motivational & Inspirational stories in hindi

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Inspirational Stories of Success& Motivational stories — For Real life story
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लक्ष्य में बाधक नहीं हो
सकती गरीबी, अगर इरादे और विश्वास मजबूत हों

विपरीत परिस्थितियों में जीत की कहानी सुपर-30 के आनंद कुमार के शब्दों में

 

यह एक निर्धन लड़के की सक्स स्टोरी है। वीरेंद्र प्रसाद सिंह का परिवार पटना के दक्षिणचक गांव में रहता था। खेती कर ये किसी तरह अपना और तीन बच्चों का पेट भरते थे।

लेकिन परिवार में घंटवारे के बाद उनके हिस्से में बमुश्किल एक में मोगा जमीन ही आई तो खाने की समस्या होने लगी वीरेंद्र दूसरे के खेतों में मजदूरी करने लगे। इससे परिवार का पेट तो भर सकता था, लेकिन सुरक्षित भविष्य का उनका सपना पूरा होना असंभव था।

उन्हें मन मसोसकर रह जाना पड़ा, क्योंकि खुद इतने पढ़े-लिखे नहीं थे कि ढंग की नौकरी कर सकें। तभी उन्होंने सोच

लिया कि चाहे जो हो जाए, वे अपने बच्चों को खूब पढ़ाएंगे, लेकिन इसके लिए पैसे की जरूरत थी। छोटा बेटा अमित जब पढ़ने की उम्र का हुआ तो वे उसे गांव में पास के एक सरकारी स्कूल में भेजने लगे।

स्कूल की हालत ऐसी थी कि शिक्षक कभी-कभार ही आते थे। बच्चों को पढ़ाने में उनको रुचि कम हो होती थी, लेकिन अमित को पढ़ने की लगन थी। यह जहां तक संभव हो सके,

खुद ही पढ़ने की कोशिश करता। जब यह सातवीं कक्षा में था तो किसी ने उसे सुपर 30 के बारे में बताया।

उसे पता चला कि इंजीनियरिंग को तैयारों के साथ वहां रहने-खाने की भी मुफ्त व्यवस्था होती है। अमित ने उसी समय तय कर लिया कि वह इंजीनियर बनेगा। इसके लिए पहले दसवीं की बोर्ड परीक्षा पास करनी जरूरी थी और अमित के लिए यह आसान नहीं था। पैसे की कमी हो अकेली समस्या नहीं थी किताबें तो वह दोस्तों से मांग कर पढ़ लेता था,

.लेकिन एक कमरे के घर में उसके लिए हालात कठिन थे। वह देर रात तक जागकर पढ़ने की कोशिश करता तो बीमार दादी की अनवरत चलने वाली खासी उसे दादी की तकलीफ के लिए परेशान कर देती थी। दादी की बीमारी ठीक हो सकती थी, लेकिन सही इलाज के लिए उसके पास पैसे नहीं थे।

 

अमित हमेशा सोचता कि पढ़-लिख कर जब वह नौकरी करेगा तो सबसे पहले दादी का इलाज कराएगा। जब वह दसवीं कक्षा में पहुंचा तो बिहार बोर्ड का सिलेबस बदल गया और अब पुरानी किताबों से पढ़ाई संभव नहीं थी। नई किताबों के लिए पैसों का प्रबंध करने में उसे तीन महीने लग गए और तब तक परीक्षा सिर पर आ चुकी थी।

वह सारी रात पड़ता रहता। उस समय गांव में बिजली नहीं थी तो दीपे की रोशनी में ही किताबों में आंखें गढ़ाए रहता। बारिश के मौसम में पानी की बूंदें फूस की छत से टपककर घर के अंदर आने लगती, लेकिन अमित डटा रहता।

 

किसी तरह दसवीं पास कर वह एक दिन सीधे ही मेरे पास आ गया। बड़ा हो शांत और सौम्य स्वभाव था, लेकिन जीवन का लक्ष्य बिलकुल स्पष्ट था- आईआईटी से इंजीनियरिंग पहली मुलाकात में ही में उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। मैंने उसे अपने बैच में शामिल कर लिया। उसे पढ़ाई के खर्च की चिंता से मुक्ति मिल गई, लेकिन पिता को दयनीय आर्थिक हालत और दादी की बीमारी उसे हमेशा याद रहती हॉस्टल में

जब सारे बच्चे रात को रात को कुछ तो उसका जवाब होता कि मेरी दादी अब भी दवा के अभाव में रातभर खांसती हैं, फिर मुझे नींद कैसे आ सकती है। मैथ्स में उसकी विशेष रुचि थी। वह इसके सवालों को हल करने के नए-नए तरीके तलाशता रहता। उसके स्वभाव और लगन से बाकी छात्र भी प्रेरित होते

आईआईटी प्रवेश परीक्षा का रिजल्ट आया, तो अमित अच्छी रैंक से पास हुआ था। परिवार वाले खुश थे, लेकिन अमित

सबसे पहले अपनी दादी के पास गया। यह बताने के लिए कि इलाज के लिए अब उन्हें चिंता की जरूरत नहीं है। डिग्री पूरी कर सबसे पहले वह यही काम करेगा। उसकी कामयाबी के चर्चे दूर-दूर तक फैले अब आईआईटी से अमित की पढ़ाई भी पूरी होने ही वाली है और जल्दी ही परिवार की आर्थिक हालत को सुधारने के सपने सच होने वाले हैं।